हम अमानत किसी और की थे,
खुद को, कभी चाह ही ना सके
उनको पाना था या स्वयं को खोना
हिसाब इसका हम लगा ही ना सके
किस्से जिनके कल हमनें सुने थे
सुनकर उनको, भुला ही ना सके
बातों से इश्क़, सबको कहाँ होता
हम चेहरा उनका दिखा ही ना सके
लिखने को बातें तो कई बनी, पर
कुछ ख़्वाब दिल में सज़ा ही ना सके
मुलाक़ात का वक़्त महसूस तो हुआ
पर, किस्से लबों पर आ ही ना सके
अब दिल ने जब से उनको बसाया,
किसी और को फ़िर अपना ही ना सके
हम अमानत किसी और की थे, तो
फ़िर खुद को कभी चाह ही ना सके
~Akshita Jangid
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