“आदमी जिंदा रहे” में जितनी भी ग़ज़लें हैं सभी आप सबके सामने एक प्रतिबिंब उपस्थित करेंगी– वेद प्रकाश ‘वेद’
“आदमी जिंदा रहे”- दौलतराम प्रजापति
सोशल मीडिया, फेसबुक, व्हाट्सएप आदि के माध्यम से आदरणीय- ‘दौलतराम प्रजापति जी’ की रचनाएं- नवगीत, गीत, ग़ज़लें आदि पढ़ने को अक्सर मिल ही जातीं और जब रचनाओं को पढ़ने लगता तो जैसे उसी में खो-सा जाता, सामने विषय-गत प्रतिबिंब नजर आता। उनकी एक-एक रचना को बार-बार पढ़ता। उनके लिखे भावों को महसूस करने की कोशिश करता और ऐसे ही रचनाएं पढ़ते-पढ़ते मन में तीव्र उत्कंठा हो चली कि उनकी और भी रचनाएं पढ़ने को मिले क्योंकि उनकी रचनाएं अंतर्मन में एक विशेष छाप छोड़ती।
उनसे संवाद में तो था ही, जैसे ही उन्होंने बताया कि उनकी ‘चौथी पुस्तक’ ‘गजल संग्रह’ शीघ्र ही प्रकाशित होने वाली है, मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा।
फिर वो दिन आ ही गया आदरणीय- ‘दौलतराम प्रजापति जी’ की लिखित बहुप्रतीक्षित ‘ग़ज़ल संग्रह’ पुस्तक ”आदमी जिंदा रहे” हाँथ आ ही गई।
वैसे तो अन्य पुस्तकें समय मिलने पर इत्मीनान से पढ़ने की आदत है, लेकिन जब अपने प्रिय व वरिष्ठ साहित्यकार की पुस्तक लंबे इतजार के बाद प्राप्त हो तो सब्र कहाँ होता है। फटाफट पैकिंग खोला और बेहद सुंदर कवर पेज के साथ पुस्तक हाँथ में थी, जिसपे लिखा मिला… “आदमी जिंदा रहे”। पुस्तक का शीर्षक पढ़कर ही अंदाजा हो गया कि जब शीर्षक में ही इतनी गहराई है तो निश्चित ही अंदर भी गहरे भाव होंगे।
“शेख जुम्मन और अलगू की मिसाले दोस्ती,
इस वतन की ये रिवायत सादगी जिंदा रहे।”
और फिर इस पुस्तक को पढ़ने के बाद मुझे लगा कि आप सब से भी इसके विषय में चर्चा करूँ, ताकि आप सब भी पुस्तक में भरे भावों-विचारों में डुबकी लगा सकें।
इस पुस्तक “आदमी जिंदा रहे” में जितनी भी ग़ज़लें हैं सभी आप सबके सामने एक प्रतिबिंब उपस्थित करेंगी। इसी पुस्तक से कुछ ग़ज़लों के कुछ अंश प्रस्तुत कर रहा हूँ, आप सब भी पढ़ें और ग़ज़लों के माध्यम से लिखे गए विचारों-भावों की गहराई में डूब जाएं।
भावों-विचारों की गहराई उनकी इन शेरों में देखें कि-
1-
रंग बदलते पल दो पल में रिश्तों की तारीफ न कर।
पल दो पल का जीवन सारा तय कोई तारीख न कर।।
नदी- नाव सा जीवन सारा दूर किनारे मंजिल है,
नफरत के अंकुर उपजा कर छेद कोई बारीक न कर।
नफरत है तो नफरत ही कर ‘दौलत’ कोई हर्ज नहीं,
मन में राम बगल में छुरी झूठी-मूठी प्रीत न कर।
2-
सवालों में नहीं रखता जवाबों में नहीं रखता।
मैं जो अहसान करता हूँ हिसाबों में नहीं रखता।।
मोहब्बत थी मोहब्बत है रहेगी उम्र भर जारी,
मैं सूखे फूल उल्फ़त के किताबों में नहीं रखता।।
3-
रोजी- रोटी खेती चौपट रोना क्या,
चीख रहे हैं भूखे नंगे हर गंगे।
न्याय की आंखों पर पट्टी थी पहले से,
अब संसद तक चोर लफंगे हर गंगे।
4-
अमन की खेतियाँ सद्भाव की फसलें उगाना है।
मेरा संकल्प है तब जा कहीं गंगा नहाना है।।
भरो बारूद नफरत की दिलों में मैं नहीं डरता,
मोहब्बत का मसीहा हूँ मुझे कलियां बिछाना है।।
5-
वादे हुए तमाम गरीबी के नाम पर।
छलके हैं रोज जाम गरीबी के नाम पर।।
लिख्खी हुई है गुठलियाँ जनता के भाग्य में,
सत्ता ने चूसे आम गरीबी के नाम पर।।
मानवीय वेदना-संवेदना-भावना, देशहित का चिंतन व मूल्यांकन कर यथास्थिति का साहित्यिक स्वरूप में प्रस्तुतिकरण आदरणीय- ‘दौलतराम जी’ की साहित्यिक विशेषता रही है, लेकिन इस पुस्तक में आपको देश, काल, समाज, मानवता, रीत, प्रीत- प्यार, खुशी-गम व स्थिति-परिस्थिति आदि सभी परिदृश्य वास्तविक रूप में आईने की भाँति परिलक्षित होंगी। वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय ‘दौलतराम प्रजापति जी’ को इस ग़ज़ल-संग्रह “आदमी जिंदा रहे” हेतु हार्दिक आभार एवं शुभकामनाएं।
✍️वेद प्रकाश प्रजापति ‘वेद’
प्रयागराज