आशा दिनकर के कुल छः पुस्तकों का हुआ विमोचन | हिन्दी श्री

आशा दिनकर के कुल छः पुस्तकों

आशा दिनकर के कुल छः पुस्तकों का हुआ विमोचन
आशा की कलम अन्याय के विरुद्ध उठती है- पं. अनित्य नारायण मिश्र
आशा दिनकर की रचनाओं में जीवटता है – डॉ सारिका शर्मा
छः पुस्तकों के माध्यम से आशा जी ने लगाया सिक्सर*- दिनेश आनंद 

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नई दिल्ली, वरिष्ठ कवयित्री आशा दिनकर’आस’ की कुल छः पुस्तकों चार ग़ज़ल संग्रह ”तन्हाइयों की महफिल” ”एहसासों का सफर”, “लम्हा-लम्हा जिंदगी”, ”ख्वाबों की ख्वाहिश” तथा दो दोहा संग्रह “मनहर दोहावली” एवं “मनोहर दोहावली” का विमोचन रविवार को नई दिल्ली, पश्चिम विहार के मीरा बाग में विभिन्न क्षेत्रों से आए वरिष्ठ साहित्य मनीषियों के करकमलों द्वारा सम्पन्न हुआ। यह कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के भदोही स्थित “हिंदी श्री” पब्लिकेशन के सौजन्य से आयोजित हुआ। दिल्ली, हरियाणा एवं उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों से आए विभिन्न साहित्यकारों की उपस्थिति में आयोजित इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पं. अनित्य नारायण मिश्र उर्फ बेबाक जौनपुरी रहे। अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव ‘शिखर’ ने की। कार्यक्रम की शुरुआत शिब्बू गाजीपुरी के सरस्वती वंदना “हंसवाहिनी शारदे, कर वीणा झंकार” से हुई, तत्पश्चात हिंदी श्री पब्लिकेशन की ओर से शिब्बू गाजीपुरी ने समस्त अतिथियों एवं साहित्यकारों का स्वागत करते हुए माल्यार्पण कर स्मृति चिह्न एवं अंगवस्त्रम से सम्मानित किया।
पुस्तक विमोचन के बाद अपने वक्तव्य में मुख्य अतिथि पं अनित्य नारायण मिश्र ने कहा कि आशा दिनकर की कलम अन्याय के विरुद्ध उठती है। अध्यक्षता कर रहे डॉ. मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव ‘शिखर’ ने कहा कि ‘आस’ जी की ग़ज़लों एवं दोहो में मानवीय संवेदना सहज ही दिख जाती है।
विशिष्ट अतिथियों एवं वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त किए। कर्मेश सिन्हा ने कहा कि आस जी के ग़ज़ल एवं दोहों के भाव में गहराई है। सुभाष दुआ ने कहा कि आशा जी राजनीतिक पाखंडों पर कुठाराघात करती रहती हैं। मनहर दोहावली पर विचार व्यक्त करते हुए प्रेम टंडन ने कहा कि उनकी रचनाओं में आम आदमी का संघर्ष दिखता है। गजल संग्रह तन्हाइयों की महफिल पर विमर्श करते हुए राधा गोयल ने कहा कि आशा दिनकर जैसा संवेदनशील प्राणी ही तन्हाइयों की महफिल को महसूस कर सकता है। डॉक्टर सारिका शर्मा ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आशा जी की रचनाओं में जीवटता है, इसमें हवेली और झोपड़ी का तुलनात्मक वर्णन भी मिलता है। दिनेश आनंद ने कहा कि आज आशा जी ने छ: पुस्तकों के माध्यम से सिक्सर लगा दिया है।  सुधीर सिंह सुधाकर ने मनहर दोहावली में वर्णित मां के दोहों पर प्रकाश डाला। हरीश भारद्वाज ने भी आशा की रचनाओं को जनमानस की आवाज बतलाई। मंजुला श्रीवास्तव ने कहा कि आशा जी कवयित्री से ज्यादा एक अच्छी इंसान भी हैं।
पुस्तक विमोचन कार्यक्रम के अगले चरण में काव्य गोष्ठी का प्रारंभ शिब्बू गाजीपुरी के गजल ‘चली है हवा दिलरुबा धीरे-धीरे’ से हुई तथा अगले कवि राकेश गम्भीर ने ‘कवि हूं, नहीं कैद में कोई परिंदा हूं’, आर डी गौतम ने ‘ आते हैं दिल में उद्गार उन्हें कागज पर सजाता हूं ‘ सुनाई। काव्य पाठ के अगले क्रम में चंद्रभान की रचना “लक्ष्य तक पहुंचे बिना पथ में पथिक विश्राम कैसा” शंकर भारती की रचना ”बिन धार के ही लोहे तलवार हो गए हैं, मेरे करीब ऐसे किरदार हो गए हैं”, दिनेश आनंद की रचना ”जीवन के कुरुक्षेत्र में कभी वाण ने बेंधा है” लोगों को अपनी ओर आकृष्ट किया। गाजियाबाद से पधारे सुधीर सिंह ‘सुधाकर’ ने अपनी रचना “सोने की चिड़िया मेरी गौरैया आओ न! तुम मेरे पास” सुनाई तो डॉ सारिका शर्मा ने अपनी कविता ” मैं आया था कुछ वर्ष पूर्व लाई मेरी सरकार” के माध्यम से मिनी नोटबंदी का दर्द बयां किया। अनिल अंकित ने अपनी कविता “जीतना सब चाहते हैं कितने जीतते हैं?”, हरीश भारद्वाज ने गर्भ से बेटी की पुकार “मां मैं बेटी हूं मुझको ना मार” सुनाई तो इंदिरापुरम की मंजुला श्रीवास्तव ने दार्शनिक रचना “मनुष्य ख्वाहिशों का अंधा खोह है” प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का बखूबी संचालन कर रहे मिर्जापुर से पधारे कवि आनंद ‘अमित’ ने अपनी प्रेरणादायक कविता “मुंह अंधेरे का काला होगा, एक न एक दिन उजाला होगा” प्रस्तुत की। 
कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए सुभाष दुआ ने अपनी कविता “जिंदगी कुछ यूं कटी गुनहगार हूं जैसे” तथा कर्मेश सिन्हा ने “आ रहे हैं दर्द सजकर बारात की तरह” सुनाया तो वरिष्ठ कवयित्री राधा गोयल ने “एक प्रश्न पूछूं तुमसे उत्तर बतलाओ तो..” के माध्यम से द्रौपदी का दर्द बयां किया तो प्रेम टंडन ने मां और बेटी पर कविता “तुम्हारे माथे पर नहीं देखी मां कभी चिंता की लकीरें” सुनाकर मां का गुणगान किया। आशा दिनकर ने अपनी कविता “खत्म न होती  कभी सियासतें सरकार की, किसको खयाल है कि आवाम का क्या हाल है” सुनाकर खूब तालियां बटोरीं। मुख्य अतिथि पं अनित्य नारायण मिश्र ने अपनी रचना “तुमको फुर्सत नहीं कमाने से, कोई मतलब नहीं जमाने से” तथा “मुझे तो जान से प्यारा मेरा तिरंगा है” सुनाया तो कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे डॉ मिथिलेश कुमार श्रीवास्तव ‘शिखर’ ने अपनी गजल “हुई है टूट के आजाद आईना तथा एक भावनात्मक कविता “रेत सी फिसलती ये जिंदगी अपनी” सुनाया। कार्यक्रम के अंत में हिंदी श्री पब्लिकेशन द्वारा आशा दिनकर को हिंदी श्री साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन कवि आनंद ‘अमित’ ने किया।

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