करवा चौथ
मेरे सर की कसम मैं मिलूंगी सनम
आप मिलने का हमसे सौगंध खाईए
बाती की भांति मै जलूंगी सनम
हर जन्म में दीपक बन आ जाइए
कपोल है लाल सुर्ख लाल रुखसार है
हैं अद्भुत ये छवि दर्पण शर्मसार है
केश काले कटी पर बलखाते हुए
बातें करती हूं खुद से सकुचाते हुए
धड़कन और सांसों में समा जाइए
व्याकुल है मनवा आप चले आइए
पूजा अर्चन इबादत प्रेम विस्तार है
नयनो को दरस का अधिकार है
सुरमई आंचल लागे सुधाकर प्रिय
नभ मंडल में तारे निशाकर प्रिय
चांद छलनी में प्रियतम की परछाई है
छण है मादक सुध बुध गंवा जाइए
श्यामल नभ के झरोखे से झांके हैं चांद
ए बादल आवारा तु ना छुप छुप के ताक
माथे चमके जी बिंदिया हाथ खनके रे कंगन
पांव सजे है महावर पायल बाजे छन छन
अधर है अधीर मेरे चुंबन को प्रिय
गात चाहे स्पर्श कोमल आलिंगन प्रिय
चांद है करवा का आप नजर आइए
है व्रत करवा चौथ बीना को ना बिसराईए
डा बीना सिंह “रागी “
ग़ज़ल
ख़ौफ़ हर सू है समाया डर रही है ज़िन्दगी
मौत से पहले ही पल-पल मर रही है ज़िन्दगी
ख्वाहिशों की है बड़ी फ़हरिश्त सबके सामने
हर घड़ी उम्मीद अच्छी कर रही है ज़िन्दगी
कब ग़रीबों पर रहम करते हैं कुछ धनवान लोग
दबदबा उनका है आहें भर रही है ज़िन्दगी
धीरे-धीरे मौत की जानिब उसे ले जा रही
जन्म से ही उसकी इक रहबर रही है ज़िन्दगी
चार दिन सबको मिले हैं,हँस के जीना है मगर
अश्क से “बीना” किसी की तर रही है ज़िन्दगी
डा बीना सिंह “रागी “