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लेखक की बात-
मैं मेहनतकश हूँ, मेहनत से गहरा नाता है,
हारी बाजी को जीतना बखूबी हमें आता है।
इस कविता संग्रह की प्रस्तावना लिखते हुए मुझे याद आ रहा है कि पहली बार मुझे कविता को नजदीक से देखने-सुनने का मौका अपने मामा जी स्वर्गीय श्री अम्बिका प्रसाद राय जी से मिला जो पश्चिम बंगाल में एक हिंदी स्कूल के प्राध्यापक थे। उन्होंने हिंदी कविता की कई किताबें लिखीं और हिंदी कविताओं को प्रमुख मंचो पर प्रस्तुत किया। तब मैं मात्र १०-१५ साल का था। उसके बाद मैं अपनी पढाई लिखाई में लग गया और इंजीनियरिंग करके नौकरी-चाकरी और फिर घर गृहस्थी के काम में व्यस्त होता चला गया।
कुछ महीनों पहले (अब मैं ५० साल का हो गया हूँ) अपने ऑफिस के एक कार्यक्रम में कुछ कर्मचारियों द्वारा कविता पाठ किये जाने पर अचानक मेरे मन में कविता लिखने का विचार आया। ये विचार इतना प्रबल था कि मुझे कविता लिखने के लिए बेचैन किये जा रहा था। यकीन मानिये कि जिस दिन मैंने कलम हाथ में लिया तो ताबड़तोड़ ५ कविताएँ उसी दिन लिख डाली। मैं बहुत आश्चर्य में था कि अचानक यह सब कैसे हो गया। मैंने इन कविताओं को अपने कुछ दोस्तों और शुभ चिंतकों को सुनाया तो उन्होंने बड़ी तारीफ की और मुझे और ज्यादा लिखने के लिए प्रेरित किया। उसके बाद मैं लिखता चला गया और देखते ही देखते कई दर्जन कविताओं का भंडार इकठ्ठा हो गया। अब मेरे दोस्त और शुभचिंतक प्रेरित करने लगे की कविता संग्रह बनाना चाहिए और प्रकाशित होना चाहिए। और ये कविता संग्रह आपके सामने है।
‘जीना इसी का नाम है’ मेरी कविताओं का संग्रह है। ये कविताएं जिंदगी के अलग-अलग पहलुओं अथवा आस-पास होने वाली घटनाओं पर अपने अनुभवों को व्यक्त करती हैं। आप मेरी कविताओं में हास्य, हास्य व्यंग्य, समसामयिक और जीवन की वास्तविकता दर्शाती परिस्थितयों को महसूस करेंगे।
-अनिल कुमार राय