6. पिता का एहसास
पिता का साथ था तो हर त्यौहार अपना था
वो खुशियों का हर पल अहसास अपना था
वो कच्चा मकान पर महल से कंहा कम था
जीवन में वो पिता ही पहला गुरु अपना था ।1।
बचपन में वो खुशियों का फरिश्ता अपना था
उंगली पकड़ के चलना सिखाया मुझको था
अपने कंधे पे कभी बिठा के घुमाया मुझको था
खिलाया गोद मे बिठा कर लाड़ प्यार अपना था । 2 ।
थी जो उनकी डांट फटकार पर प्यार अपना था
था जो उनका डर हममें पर अपनापन अपना था
जाते थे कभी पाठशाला मेरी खाने का टिफिन,
लेकर उन्हें मेरी भूंख का अहसास वो अपना था । 3 ।
करते थे मेरी बातें टीचर से वो स्वभाव अपना था
उन्हें बस हर पल मेरी कमी का ख्याल उनको था
बेटा सफल हो ये सपना वर्षो से सीने में बसाया था
भूंखे रहे पैदल चले मेरे लिए पसीना बहाया अपना था
न जाने मेरे पिता ने कितना संघर्ष कर डाला था
मेरी खातिर खुद को ठोकरों से बचाया कितना था
पिता ने सत्य राह पे चलना सिखाया मुझको था
पिता में ही मेरा भगवान,भविष्य नजर आया था । 4।