पुस्तक समीक्षक अतुल्य खरे | ग़ज़ल संग्रह – मरूँगा नहीं | हिंदी श्री पब्लिकेशन

पुस्तक समीक्षक : अतुल्य खरे
समीक्षित पुस्तक : ग़ज़ल संग्रह – मरूँगा नहीं
गज़लकार : राम राज राजस्थानी
प्रकाशक : हिंदी श्री पब्लिकेशन

युवा गज़लकार राम राजस्थानी ने, इस ग़ज़ल संग्रह में अपनी 98 गजलों को प्रस्तुत किया है . कह सकते हैं की ये उनके दिल की आवाज़ है हर शेर को उन्होंने भरपूर जिया है क्यूंकि शेर के भाव को देखें तो वो सच , वो प्यार की वफ़ा बेवफाई, मिलने बिछुड़ने का दर्द खुद ब खुद उभर कर नज़र आता है . अपने तजुर्बे और एहसासों को खूबसूरत अल्फाजों से नवाज़ा है फिर भी इज़हार में सादगी है गज़ल को बेवज़ह भारी भरकम शब्दों से खूबसूरत बनाने के स्थान पर उन्हें सहज एवं सरल तथा आम जन हेतु पठनीय रखने का प्रयास स्पष्ट नज़र आता है ,साफ़ सुथरी ग़ज़लें है ख्यालों में गहरायी है और शेर के पीछे की गहरी सोच बार बार नज़र आती है . बात बेशक वफ़ा ज़फा ,गिले शिकवे की ही है लेकिन युवा शायर का अंदाज़े बयां कुछ ज़ुदा है . युवा पीढ़ी के गज़लकार जो की ग्रामीण परिवेश से आते है प्रतिभाशाली है साथ ही इस क्षेत्र में, नयी पीढ़ी, विशेषकर ऐसे क्षेत्रों से जो अभी भी आधुनिकता की चकाचौंध से दूर हैं, का आना वह भी ग़ज़ल के क्षेत्र में साहित्य के भविष्य के प्रति आश्वस्त करता है एवं ग़ज़लों को पढ़ कर गज़लकार के भीतर छुपी प्रतिभा अभी और निखरेगी इस बात से इनकार करना मुश्किल होगा.

युवा गज़लकार राम राजस्थानी के पूर्व में प्रकाशित काव्य संग्रह “अधूरा इश्क” को भी अच्छा प्रतिसाद मिला था .समय समय पर उनकी रचनाएं स्थानीय पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती है एवं विभिन्न मंचों पर सम्मानित किये जा चुके है.

लगभग हर शेर में सीधी सीधी बात कही है कोई घुमाव फिराव नहीं है , गाँव से उनका जुडाव या शहर में दिल न लगने की बातें बार बार दिखलाई पढ़ती हैं . बानगी देखिये —

मिलेंगे शहर में फ़क़त भले इंसान
खुदा जो देखना चाहो हमारे गांव चलो II
वहीं एक और शेर की सादगी देखिए
मिलन उनसे मेरा राज कब होगा खुदा जाने
उधर से वो नहीं आते इधर से मैं नहीं जाता II
शेर की सादगी की एक और मिसाल देखिये
जिंदगी कैसी भी मिले तुम बिन
तुम नहीं तो जिंदगी क्या है ,
प्यार को जो गलत बताते हैं
वो बताये मुझे सही क्या है II
और अंत में एक और शेर
वो फूल हूँ मै खिज़ाओं से जिसने प्यार किया
तमाम उम्र बहारों को दरकिनार किया ,
करार पाके भुला दूं न मैं कहीं उसको
तमाम उम्र इसी डर ने बेक़रार किया II. ,

ये चंद शेर बस आपको पुस्तक की एक झलक देने के उद्देश्य से यहाँ दिए है और भी बहुत से खूबसूरत शेर कहे गए है , युवा गज़लकार का सराहनीय प्रयास है अंत में एक बात और , की उर्दू के अलफ़ाज़ यूँ तो बहुत ज्यादा नहीं है पर जहाँ है वहां उनके मायने भी साथ दे दिए जाते तो वे पाठक जिनका उर्दू जुबां में हाथ तंग है थोडा सहज महसूस करते एवं ग़ज़ल का भरपूर आनंद ले पाते .साथ ही अपनी ग़ज़लों को कोई नाम न देकर उनके साथ अन्याय किया प्रतीत होता है . उनको गर एक पहचान दे दी जाती हर ग़ज़ल का एक नाम होता तो शायद उद्धृत करना भी सुलभ होता और ग़ज़ल का आनंद ज्यादा होता .

मेरी नज़र में एक पढने योग्य ग़ज़ल संग्रह है , शेष आप पर छोड़ता हूँ . पढने के पश्चात निर्णय लें किन्तु पढ़ें ज़रूर

सादर,
अतुल्य
9131948450.
उज्जैन मध्य प्रदेश
21.03.2023

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