स्मृति-लेख
अँधेरे के पुल से जाता हुआ शुभम् श्रीवास्तव ओम
-राजेन्द्र गौतम
रिटायर्ड प्रोफेसर,
दिल्ली विश्वविद्यालय
रहा तो यहां कोई भी नहीं है, एक दिन सभी जाते हैं लेकिन इस तरह असमय जाना जिस तरह शुभम् चले गए झिंझौड़ कर रख देता है। 30-31 वर्ष की उम्र में इतनी परिपक्वता! तीन-तीन संकलनों में अपने समय की धड़कनों को दर्ज करते हुए गीत; समकालीन नवगीतकारों की आवाज को स्थायी बनाने के प्रयास में पांच लोकगीतकारों के संकलनों का संपादन और नवगीत पर शोधपरक लेखन! हमें नवगीत का भविष्य दिखने लगा था उसमें। शुभम् से नवगीत के परिदृश्य पर, उसकी उपलब्धि और सीमाओं पर और भविष्य की योजनाओं पर मार्च में तीन-चार बार फोन पर लंबी-लंबी वार्ताएं हुईं। सिलसिला अचानक टूट जाएगा यह तो सोचा ही न था कभी।
30 जुलाई 1993 को जन्मे शुभम् ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और साहित्य-रचना भी समानांतर रूप से चलती रही। अल्प समय में ही ‘हरिवंशराय बच्चन युवा गीतकार सम्मान’, ‘अभिव्यक्ति नवांकुर सम्मान’, ‘नवगीत साहित्य सम्मान’, ‘फिराक गोरखपुरी पुरस्कार’ और ‘हिंदुस्तानी अकादमी युवा सम्मान’ से शुभम् को नवाजा गया था। उनके संकलन ‘फिर उठेगा शोर एक दिन’ (2017), ‘गीत लड़ेंगे हथियारों से’ (2019) और ‘शोक गीतों के समय में’ 2021 स्तरीयता का एक मानक प्रस्तुत करते।
शुभम् के गीतों का कथ्य ही जन-जीवन से नहीं जुड़ा था, उसके पास वह भाषा भी थी जो पाठक तक उस संवेदना को पहुंचा सके। कहन के सारे उपकरण, चाहे बिंब हों, अप्रस्तुत हों यह लय और छंद का सधा हुआ विधान हो, उनके गीतों में जान डाल देते थे। यह कवि श्रम-दिवस को (एक मई 2024) इस दुनिया से चला गया लेकिन श्रम के सम्मान के उनके रचे गीत “बाल बीनतीं औरतें” से अधिक प्रासंगिक गीत क्या हो सकता है?
कटे खेत में देर शाम तक
बाल बीनती हुईं औरतें!
लिये हाथ में झौवा-खाँची
फटी किनारी, गुड़ की भेली
खड़ीं मेड़ पर पूछ रही हैं
“कहा महाजन! आई, ले ली”
बहुत देर तक जोह रही हैं
मन भीतर तक टोह रही हैं
लम्बा सूखा झेल रही हैं
ये पानी की कुईं औरतें।
नहीं नाम, पहचान अलग से
जो कुछ भी है केवल जाँगर
कहीं दूर छोटी सी बस्ती
कुछ बौने अधनंगे से घर
चूल्हा बटलोई कलछुल से
जाते हुए अँधेरे पुल से
सुबह मिला करती हैं कुचली
ये महुए सी चुईं औरतें।
रोज गिना जाते हैं फिर से
आते-जाते साहबजादे
अभी पीढ़ियों का कर्जा है
अभी बचे हैं कई तगादे
अपने समकालीन समय से
कटीं-कटीं सी जीवनलय से
गायब हैं नारी विमर्श से
ये बेचारी मुईं औरतें।
जॉन किट्स ने ‘ओड टू ऑटम’ में ‘सिला’ बीनती हुई और खेत पर अन्य काम करती हुई मजदूरनों का और सांझ के समय उनके सर पर गटठर लिए लौटने का चित्रण अद्भुत बिम्बों के माध्यम से इस प्रकार किया है:
And sometimes like a gleaner thou dost keep
Steady thy laden head across a brook;
Or by a cyder-press, with patient look,
Thou watchest the last oozings hours by hours.
मुझे शुभम् का उपर्युक्त गीत पढ़ते हुए किट्स की वह कविता बार-बार याद आती रही लेकिन किट्स जहाँ प्रकृति के बिम्बों की समृद्धि ही रचते हैं, वहां शुभम् कृषि-मजदूरी करती महिलाओं की दुर्दशा, लाचारी और श्रम के अंतहीन शोषण का कारुणिक आख्यान लिखता है। समकालीन समय में स्त्री-विमर्श का शोर कानफाड़ू होता जा रहा है लेकिन यह मजदूर औरतें उस विमर्श में कहीं नहीं हैं। यह औरतें दोहरे शोषण का शिकार होती हैं। इनका पसीना भी खरीदा जाता है और उनकी देह भी कुचली जाती है लेकिन विडंबना यह है कि उनकी यात्रा एक अंधेरे पर पुल से गुजरने की हो गई है। लगता है,इनका न कोई अलग से नाम है, न पहचान। उनका केवल जाँगर है। दूर छोटी सी बस्ती में उनके बौने अधनंगे घर उन्हीं की तरह अस्तित्वहीन हैं। इनकी यातना काभी समाप्त होने वाली नहीं रोज आते-जाते साहबजादे अभी पीढ़ियों का कर्जा है बाकी है, तगादे बंद नहीं होने वाले।
इतनी सशक्त भाषा में अर्थ को अपने गीतों में सँजोने वाले इस युवा कवि का जाना बहुत पीड़क है!
बहुत याद आओगे शुभम्
-रविनंदन सिंह
संपादक- सरस्वती पत्रिका, प्रयागराज
शुभम श्रीवास्तव ’ओम’ की अभी उमर ही क्या थी, मात्र 30 साल 8 महीने। इतनी जल्दी चले जाएंगे, विश्वास नहीं होता। अभी कुछ दिन पहले 25 मार्च को ही उनका फोन आया था कि “भैया सरस्वती के लिए अक्षय पांडेय के गीत संग्रह की समीक्षा भेजा हूं, देख लीजिएगा।“ उस दिन लंबी बात हुई थी। उनका गीत संग्रह "शोकगीतों के समय में" अभी जल्दी ही आया था लेकिन उनके लिए शोकगीत लिखना पड़ेगा, कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। राजस्व निरीक्षक के पद पर कार्यरत, काशी विद्यापीठ से शोधरत शुभम को एक लंबी यात्रा करनी थी। अभी उनकी यात्रा की शुरुआत ही थी और आरंभ में ही उन्होंने पूरे नवगीत संसार को चमत्कृत और सम्मोहित कर दिया था। अचानक आई बीमारी और दवा का ’रिएक्शन’ उन्हें आज सुबह हमसे छीन ले गया। यह हम सबके लिए एक बज्रपात है।
लेखन के क्षेत्र में शुभम जिस सजगता के साथ उतरे थे, वैसी सजगता बहुत कम युवा रचनाकारों में दिखाई देती है। वे नवगीत-सृजन और उसकी आलोचना दोनो क्षेत्रों में गंभीर काम कर रहे थे। नवगीत की समकालीनता में शुभम अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुके थे और नवगीत की अनिवार्यता बन चुके थे। उनके पास नवगीत के शिल्प की बारीक समझ थी। उनका चिंतनपक्ष बहुत समृद्ध था। इसका कारण यह है कि उन्होंने अपने वरिष्ठों को पढ़कर, उनके पास जाकर, उनसे बहुत कुछ सीखा था। सबसे बड़ी बात जो उनके पास थी, वह थी उनकी सूक्ष्म अंतर्दृष्टि। शुभम जीवन और जगत की गतिविधियों का सूक्ष्म एवं गहन अवलोकन करते थे और उसे नवगीत में ढालते थे। उनके पास सृजन की पूरी तैयारी और योजनाबद्ध रूपरेखा थी। कम उम्र में तीन नवगीत संग्रह और तीन नवगीत संग्रहों का संपादन करके वे नवगीत के अनिवार्य हस्ताक्षर बन चुके थे। वे रचनाकर्म के पथ पर एक-एक पाँव सावधानी से रख रहे थे, इसलिए शुभम के रचनात्मक भविष्य को लेकर हम सभी पूरी तरह आश्वस्त थे।
लेकिन जो अनिष्ट होना था वो तो हो ही चुका और इसकी भरपाई किसी भी तरह से नहीं हो सकती। इस पीड़ा के क्षणों में यही कहूंगा कि --
अपनी झोली को उठाकर अलविदा सी हो गई
जिन्दगी हमसे अचानक बेवफा सी हो गई।।
प्यारा शुभम् हमारा
-डॉ. अक्षय पाण्डेय
प्रवक्ता, इंटर कॉलेज करण्डा, गाज़ीपुर
बेहद अशुभ ख़बर लाया है
आज समय-हरकारा,
सूख गई नवगीत-नदी की
एक अनाविल धारा।
अभी जिसे सागर होना था
अंतरीप गढ़ना था,
बूॅंद-बूॅंद में घन बन कर
गिरि-शिखरों पर चढ़ना था,
खेत ताल तरु खग-मृग का
बनना था जिसे सहारा।
सूख गई नवगीत-नदी की
एक अनाविल धारा।
आसमान से बन प्राची की लाली
उतर रहे थे,
सबकी ऑंखों में बनकर हरियाली
उतर रहे थे,
बिखर गया इक सुन्दर सपना
होकर पारा पारा।
सूख गई नवगीत-नदी की
एक अनाविल धारा।
धीरे-धीरे उतर रहीं हैं
सुधियाॅं गहरे मन में,
तैर रहा है सस्मित चेहरा
ऑंसू भरे नयन में,
चला गया मुॅंह-मोड़ सभी से
प्यारा शुभम् हमारा।
सूख गई नवगीत-नदी की
एक अनाविल धारा।
विनम्र श्रद्धांजलि……
बार-बार आँखें सजल हो जाती हैं
-गरिमा सक्सेना
प्रसिद्ध कवयित्री
नियति के आगे कितने विवश हैं हम सब…कभी नहीं सोचा था कि तुम्हारे लिये ऐसी कोई पोस्ट लिखनी पड़ेगी.. हमेशा तुम्हारी उपलब्धियों पर बधाई की पोस्ट लिखी तुम्हारे लिये… मन बहुत अशान्त है इस अनहोनी से.. मेरे पास शब्द नहीं हैं बार-बार आँखें सजल हो जाती हैं पुरानी बातें याद करके.. इतनी कम उम्र में तुम्हारी उपलब्धियाँ व नवगीत का अध्ययन अनुपम था…तुम हमेशा नवगीत के मामले में प्रोफेसर की तरह मुझसे बात करते थे एक कड़े आलोचक थे मेरे लिये.. हमेशा मेरे गीतों में कमियाँ निकालते थे .. सच कहूँ कभी-कभी मन खीझता भी था तुम्हारी टिप्पणी से पर असल में तुमने मुझे सही दिशा ही दिखायी, परिष्कृत किया.. एक बार तुमने मेरे घर के परदे को लेकर चिढ़ाया था.. जिससे वो परदा शब्द कहीं न कहीं मेरे मस्तिष्क में घर कर गया था और मेरे परदे नामक गीत का सृजन हुआ था.. पहली बार तुमने मेरे किसी गीत की प्रशंसा की थी.. वह परदा वाला गीत ही था…
तुम्हारा हर बार का मेसेज ‘का हाल बहन’, ‘लखनऊ कब आयेंगी मिलना कब होगा’ अब कभी नहीं आयेगा दुबारा… तीन साल पहले तुमने ज़िद करके मुझसे कहा था दीदी कंजूसी नहीं अबसे वर्चुअल राखी नहीं डाक से सच की राखी भेजो… नवगीत को लेकर तुम्हारी कितनी दूरदर्शी सोच व चिंतन था… कितनी बार लम्बी बात हुआ करती थी… कितनी योजनायें थीं तुम्हारी… सब शून्य हो गयीं.. सुबह से ही कितनी बातें यादें मन में घूम रही हैं… अभी लगभग दस दिन पूर्व की बात में तुमने कहा था “दीदी मैं भी बड़ा कवि हो गया हूँ, जयशंकर प्रसाद जैसा मुझे क्षय रोग जो हो गया है, और नवगीत में देखियेगा मैं एक दिन टाॅप पर होऊँगा” मैंने कहा था हाँ नि:संदेह तुम श्रेष्ठ हो.. लेकिन तबियत सही करो पहले..
कई लोग तुमको उभरता सितारा कह रहे हैं आज, पर तुम एक दैदीप्यमान सूर्य थे नवगीत के..
क्या लिखूँ कुछ समझ नहीं आ रहा … बहुत यादें हैं.. बस ईश्वर तुम्हें अपने श्रीचरणों में स्थान दें.. बाकी इस नश्वर जगत में तुम्हारा चिरायु साहित्य हमेशा तुम्हें जीवित रखेगा…तुम्हारा जाना नवगीत के लिये और मेरे निजी जीवन के लिये अपूरणीय क्षति है.. कोशिश करूँगी कि तुम्हारी कुछ अधूरी योजनाओं को मूर्त रूप दे सकूँ… अश्रुपूरित विनम्र श्रद्धांजलि शुभम
युवा कवि- गीतकार- ग़ज़लकार एवं मिर्ज़ापुर के साहित्यिक-क्षितिज के तेजस्वी नक्षत्र अनुज शुभम् श्रीवास्तव ओम
-डॉ संजय सिंह
महासचिव, प्रभाश्री ग्रामोदय सेवा आश्रम, देवगढ़
युवा कवि- गीतकार- ग़ज़लकार एवं मिर्ज़ापुर के साहित्यिक-क्षितिज के तेजस्वी नक्षत्र अनुज शुभम् श्रीवास्तव ओम के असमय दिवंगत होने का दुःखद समाचार प्राप्त हुआ। आज 1 मई, 2024 ई. की सुबह काल बनकर आयी और मिर्ज़ापुर से उसके प्यारे लाल को छीनकर ले गयी। मिर्ज़ापुर की साहित्य-सृष्टि का एक चमकदार सितारा सदा के लिए अस्त हो गया। यह साहित्य-संसार की अपूरणीय क्षति है।
महान् दार्शनिक श्रीमदाद्य शंकराचार्य (507-475 सा.यु.पू. = 32 वर्ष), मराठी सन्तकवि ज्ञानदेव (1275-1296 ई. = 22 वर्ष), कवि-नाटककार मार्लो क्रिस्टोफर (1564-1593 ई.), विश्वप्रसिद्ध अंग्रेज़ी कवि पी.वी. शेली (1792-1828 = 30 वर्ष), आंग्लकवि जॉन किट्स (1795-1821 ई. = 26 वर्ष), सुप्रसिद्ध ऑस्ट्रेलियाई संगीतकार फ्रांज शूबर्ट (1797-1828 ई. = 31 वर्ष), हिन्दी-मळयाली कवि महाराजाधिराज स्वातितिरुनाळ वर्मा (1813-1846 ई. = 33 वर्ष), बाबू गोपालचन्द्र ‘गिरिधरदास’ (1833-1860 ई. = 27 वर्ष), आधुनिक हिन्दी के जनक भारतेन्दु बाबू हरिश्चन्द्र (1850-1885 ई. = 35 वर्ष), अंग्रेज़ी-फ्रांसीसी कवयित्री बंगेलसुता तोरूदत्ता (1856-1877 ई. = 21 वर्ष), वेदान्त के महान् साधक-प्रचारक स्वामी रामतीर्थ (1873-1906 ई. = 33 वर्ष), महान् गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन (1887-1920 ई. = 33 वर्ष), कविवर हरिशरण श्रीवास्तव ‘मराल’ (1900-1933 ई. = 33 वर्ष), महाकवि कौशलेन्द्र राठौर ‘कौशलेन्द्र’ (1901-1930 ई. 29 वर्ष), ईशदत्त शास्त्री ‘श्रीश’ (1915-1946 ई. = 31 वर्ष) प्रभृति की तरह ही ईश्वर ने अल्पायु प्रातिभ प्रतिभा पंक्ति में ही शुभम् श्रीवास्तव ‘ओम’ (30 जुलाई, 1993 ई. – 1 मई, 2024 ई. = 31 वर्ष) का नाम लिखा था। शुभम् ने अल्पायु में ही एक अलग स्थान बना लिया था। हिन्दी-नवगीत और ग़ज़ल के क्षेत्र में शुभम् का योगदान चिरस्मरणीय है।
वैसे अब इन बातों से क्या! जानेवाला चला गया। हम मृत्युलोकवासियों के हाथ में सान्त्वना और मोढ़स के अतिरिक्त है ही क्या! अब तो केवल स्मृतियाँ ही शेष हैं। भगवान् की वाणी का आश्रय ग्रहण करते हुए केवल यही कहा जा सकता है –
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि।।
- श्रीमद्भगवद्गीता 2/27
जिसने जन्म लिया है उसका मरण ध्रुव निश्चित है और जो मर गया है उसका जन्म ध्रुव निश्चित है इसलिए यह जन्ममरणरूप भाव अपरिहार्य है। अर्थात् किसी प्रकार भी इसका प्रतिकार नहीं किया जा सकता। इस अपरिहार्य विषय के निमित्त तुझे शोक करना उचित नहीं है।
ईश्वर पृथगात्मा को अपनी दिव्य परिषद् में स्थान प्रदान करने के साथ ही शोकसन्तप्त परिवार को इस असह्य दुःख को सहने की शक्ति दें। ॐ शान्ति! ॐ शान्ति!! ॐ शान्ति!!!
-ममता लड़ीवाल
संस्थापक- कवि-मित्र
गाज़ियाबाद
उसकी वॉल देखी तो उसने ख़ुद ही आख़िरी पोस्ट किसी साहित्यकार के निधन की कर रखी है, विश्वास नहीं हो रहा कि शुभम चला गया…पता करने के लिए दीपक भारतवासी जी को कॉल लगाया तो बिजी आ रहा है उनका नम्बर…
इतने प्रतिभावान युवा रचनाकार का यूँ असमय चले जाना….नहीं, ये ग़लत हो…
किसी को पता हो कि क्या हुआ है, तो वो अवश्य बताए मुझे…मन बहुत विचलित है
उससे जब भी मुलाक़ात हुई…चर्चा में कितना कुछ सीखने को मिला, उसने सम्मान भी दिया, स्नेह भी रखा…कभी ज़िद्दी भी लगा पर उसका अधिकार जताना, स्वयं पर इतना विश्वास होना भी अच्छा लगता था।
नवगीत में उसने कम उम्र में जितना कार्य किया, पीढ़ियाँ उसे याद रखेंगी।
अच्छा होगा अगर वो ख़ुद पोस्ट पर आ कर ये लिख दे… ‘दीदी बिन पूरा सच जाने पोस्ट नहीं करनी चाहिए आपको…मैं तो एकदम ठीक हूँ’
याद तुम्हारी जैसे कोई कंचन कलश भरे
-डॉ संतोष कुमार तिवारी
पूर्व प्रो. शहीद हीरा सिंह राजकीय महाविद्यालय, धानापुर
‘याद तुम्हारी जैसे कोई कंचन कलश भरे, जैसे कोई किरण अकेली पर्वत पार करे’ इन पंक्तियों के रचनाकार सुप्रसिद्ध नवगीतकार श्री महेश्वर तिवारी के गोलोकवासी होने की सूचना तुमने ही शिवम कुछ दिनों पहले दी थी। तुम भी उनका साथ निभाना इतना जल्दी चले जाओगे, विश्वास नहीं होता। ‘जब भी छोड़ कर जाओगे तुम यह शहर, देर तक हिलते रहेंगे हाथ। तुम्हारे साथ अभी कितनी सारी योजनाएं थी, सब बेकार हो गई ।अभी तो दो वर्ष पहले ही तुमने पिताजी पर हुए सेमिनार की काव्य -गोष्ठी में कितना शानदार संचालन किया था ।तुम नवगीत के प्रति प्रतिबद्ध थे। नवगीत की तुम्हारी समझ और सूक्ष्म दृष्टि देखने लायक थी ।हमेशा याद आओगे तुम। क्यों होंठ लरजते हैं ,क्या आज हुआ तुमको। खुशबू के बहाने से मौसम ने छुआ तुमको।।
शुभम् श्रीवास्तव ओम भाई इतनी जल्दी नहीं जाना था! अश्रुपूरित श्रद्धांजलि!
-योगेंद्र प्रताप मौर्या
अध्यापक व प्रसिद्ध नवगीतकार, जौनपुर
बदहवास सी हँसी
सूखते सपनों वाले उत्सव,
यह हत्यारा समय दे रहा
कैसे-कैसे अनुभव!
सन्नाटों की गूँज
बेबसी ओढ़ चुकीं शर्तें,
धीरे-धीरे
धुआँ हो रहीं सपनीली पर्तें,
मन को समझा लेना
ऐसे में कैसे हो सम्भव !
आस-पास बस घने अँधेरे,
अन्तहीन जंगल,
आग बरसती सिसकी
गहरे मातम के बादल,
रोज वीडियो-कॉल दिखाती
अपनों के जलते शव !
-शुभम् श्रीवास्तव ओम
शुभम श्रीवास्तव ओम मेरे प्यारे भाई तुम्हारा यूं जाना हृदय को व्यथित कर रहा है। तुम नवगीत के सशक्त हस्ताक्षर बन चमक रहे थे और ऐसे अचानक चल दिये…
-सखी सिंह
भाषा सहोदरी हिंदी समिति
एक ऐसा स्वर जिसे बिना सुने रह नही सकते थे आप, आज हमसे दूर हो अपनी अनंत यात्रा पर चला गया। बीमारी ने इस चमकते व्यक्तित्व को हमसे छीन लिया।
तुम्हारे साथ बिताए लम्हें बहुत याद आ रहें है शुभम। भगवान को इतना कठोर नही होना था। परिजन कैसे इस आघात हो सह सकेंगे जब हम मित्र ही यकीन नही कर पा रहे। तुम जहाँ भी हो खुश रहना भाई इन शब्दों के सिवाय क्या कहूँ, मन साथ नही दे रहा कि तुम्हारे लिए ये पोस्ट लिखूं। फिर भी लिख रही हूं और क्या करूँ कुछ समझ नही आ है। हम सब कठपुतली मात्र है उस ईश्वर के हाथों की।
तुम्हें प्यार सहित विनम्र विदाई मेरे प्यारे भाई
तुम्हारे नवगीत तुम्हें सहित्य जगत में सदा अमर रखेंगे भाई। तुम
“फिर उठेगा शोर एकदिन….” लो शोर उठा गए तुम….
सन्नाटों की गूंज
-हिंदी विभाग
काशी विद्यापीठ, वाराणसी
बदहवास सी हँसी सूखते सपनों वाले उत्सव यह हत्यारा समय- दे रहा कैसे-कैसे अनुभव।
सन्नाटों की गूंज बेबसी ओढ़ चुकीं शर्तें धीरे-धीरे धुँआ हो रहीं सपनीली पर्तें
मन को समझा लेना ऐसे में कैसे हो सम्भव !
आस-पास बस घने अँधेरे, अन्तहीन जंगल आग बरसती सिसकी गहरे मातम के बादल
रोज वीडियो-कॉल दिखाती अपनों के जलते शव !
शोक गीतों के समय में 59
विभाग के शोध छात्र शुभम् श्रीवास्तव ओम नहीं रहे! विभाग की ओर से भावभीनी श्रद्धांजलि!
विभाग के लिए यह अपूरणीय क्षति है। विभाग की ओर से शाम ०४ बजे(०१-०५-२०२४) को कक्ष संख्या १९ मानविकी संकाय में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन होगा! अधिकाधिक संख्या में उपस्थित होकर शोक सभा में एकजुटता प्रकट करें!