बाल साहित्य में परीकथाओं की प्रासंगिकता | कृष्ण बिहारी पाठक
बाल साहित्य चाहे किसी भी देश-काल, समाज – संस्कृति का हो और वह चाहे किसी भी विधा में उपस्थित हो, बाल साहित्य कहलाने के लिए उसमें दो प्राथमिकताएं अवश्य तय होनी चाहियें। प्रथम तो यह कि वह बालकों के लिए हितकर हो तथा दूसरी यह कि वह रुचिकर हो। हितकर का संबंध उन पहलुओं से […]
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