बलिया /उत्तरप्रदेश (अमरेश सिंह),29 मई।बलिया जनपद के प्रख्यात साहित्यकार एवं कवि रहे स्व० डॉ० रामसेवक ‘विकल’ जी की किताब “श्रीमद् भागवत गीता का भोजपुरी भावानुवाद” का दूसरा संस्करण विमोचन 18 जून 2023 (रविवार) को प्रातः 10 बजे से भोजपुरी भवन, गोलमुरी, टाटानगर, जमशेदपुर (झारखंड) में विकल जी के ज्येष्ठ पुत्र तथा प्रख्यात साहित्यकार डॉ० आदित्य कुमार ‘अंशु’ के संयोजन में किया जाएगा। इस आयोजन में देश के विभिन्न भागों से हिंदी, भोजपुरी, उड़िया, बंगला के प्रख्यात कवि और साहित्यकार शिरकत करेंगे।
डॉ० रामसेवक विकल जी का जन्म बलिया जनपद के इसारी सलेमपुर ग्राम में हुआ था। बलिया के सतीशचंद्र डिग्री कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई के पश्चात् आगे की शिक्षा के लिए जमशेदपुर (झारखंड) गए। जहां पर रांची विश्वविद्यालय से उन्होंने हिंदी साहित्य में पीएचडी की डिग्री प्राप्त की साथ ही सिंहभूम में गिरी भारती विद्यालय में अध्यापन करने लगे। डॉ० रामसेवक विकल जी ने गीत, गजल, कविता, कहानी, नाटक, एकांकी, शोधप्रबंध इत्यादि विधाओं में खूब लिखा है। डॉ० विकल जी भोजपुरी, हिंदी, संस्कृत, उड़िया, बंगला, अंग्रेजी एवं संस्कृत भाषाओं के प्रकांड विद्वान थे। डॉ० विकल जी ने विभिन्न भाषाओं में सहस्राधिक रचनाएं की, जिनमें “श्रीमद् भागवत गीता का भोजपुरी भावानुवाद” भी सम्मिलित है। जिसका पहला संस्करण सन् 1979 में जमशेदपुर साहित्य परिषद् से प्रकाशित हुआ, जिसकी भूमिका तत्कालीन ज्योतिष्पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य जी ने लिखी। आचार्य विनोबा भावे जी ने विकल जी कृत “श्रीमद् भागवत गीता के भोजपुरी भावानुवाद” को काफी सराहा तथा आशीर्वाद भी दिया।
सन् 2002 में डॉ० विकल जी के देहांत के पश्चात् उनके नाम पर उनके ज्येष्ठ पुत्र डॉ० आदित्य कुमार ‘अंशु’ ने, जो कि स्वयं हिंदी, भोजपुरी, संस्कृत के विद्वान एवं साहित्यकार हैं, जनपद बलिया के गृहग्राम इसारी सलेमपुर में एक साहित्यिक संस्था “डॉ० रामसेवक विकल साहित्य कला संगम सेवा ट्रस्ट” तथा एक पुस्तकालय “डॉ० रामसेवक विकल पुस्तकालय एवं वाचनालय” स्थापित किया है। इस संस्था के द्वारा विभिन्न कार्यक्रमों इत्यादि का आयोजन किया जाता रहा है। जिनमें अनेक बार क्षेत्र की जनता एवं साहित्यकारों द्वारा यह कहा गया कि डॉ० विकल जी द्वारा कृत “श्रीमद् भागवत गीता के भोजपुरी भावानुवाद” का पुनः प्रकाशन कराया जाए। अंततः आज जून 2023 में इसका द्वितीय संस्करण, हिंदी श्री प्रकाशन से प्रकाशित हो रहा है, जिसका विमोचन 18 जून 2023 को डॉ० रामसेवक विकल की कर्मभूमि जमशेदपुर के भोजपुरी भवन, गोलमुरी टाटानगर में प्रस्तावित है।
जैसे श्रीमद्भागवतगीता का प्रमुख और प्रसिद्ध श्लोकों में से एक गीता के अध्याय 4 का श्लोक 7 और 8 है। यह श्लोक का वर्णन महाभारत में भगवान श्रीकृष्ण ने किया था जब अर्जुन ने कुरूक्षेत्र में युद्ध करने से मना कर दिया था।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥४-७॥
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् ।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥४-८॥
(अर्थ: मै प्रकट होता हूं, मैं आता हूं, जब जब धर्म की हानि होती है, तब तब मैं आता हूं, जब जब अधर्म बढता है तब तब मैं आता हूं, सज्जन लोगों की रक्षा के लिए मै आता हूं, दुष्टों के विनाश करने के लिए मैं आता हूं, धर्म की स्थापना के लिए में आता हूं और युग युग में जन्म लेता हूं।)
इन श्लोकों का सुंदर भावानुवाद देखिए –
जब जब हानि धरम के होला, अधरम जग में बढ़ि जाला।
हे पारथ! तब तब दुनिया में, जन्म हमार होई जाला।। 7 ।।
साधूजन के रच्छा खातिर, करे के दुष्टन के संहार।
धरम जगत में राखे खातिर, जुग- जुग में होला अवतार।। 8 ।।
अतः साहित्यप्रेमी, कृष्णभक्त, भोजपुरी- हिंदी भाषी पाठकों के लिए यह पुस्तक निश्चित रूप से संग्रहणीय तथा पठनीय है। वर्षों तक यह पुस्तक गीता के अनंत ज्ञान को सहज एवं सरल भाषा में आम जनमानस तक पहुंचाती रहेगी।