भवेशचंद्र जायसवाल की रचनाएं
1. समय पर सब कुछ होता है
समय पर सब कुछ होता है
अँधेरे में हमसे कोई दोस्त
दुश्मन बन जाता है
कोई दुश्मन नाम बदल कर
दोस्त बन जाता है
किसी की राह तक रहा होता है
हममें से कोई
संवेदना से नाता तोड़
गढ़ता है हमें अपने हथियार सा
तोड़ने संसद और देवालय
समय पर सब कुछ होता है
कोई चेहरा
लकड़बग्घे की तरह
बाहर निकलता है
भेड़ियों की तरह
बुनते हुए वहशी योजनायें
और
हमीं में से कोई
ईश्वर का गान करते- करते
तन्मय हो जाता है
हमारी दिशा बदलने में
कोई
अपना ताना- बाना छोड़
सबकी ख़ैर माँगने
खड़ा हो जाता है बाज़ार में
कबीर की तरह
बाज़ार को ललकारता हुआ
समय पर सब कुछ होता है
ज़िन्दगी के अन्तिम दिनों में भी
काम करते वक्त
कोई बूढ़ा
काँपते हुए समझाता है कि
यह जीवन ही सबसे बड़ी उपलब्धि है
क्या कोई इतिहासकार
इसे लिखने को
आयेगा?
2. शब्दकार
मैं दूॅंगा तुम्हें शब्द
आत्मानुभूति के
हवा की सरसराहट के
पानी के बहनों के
हिलते हरे पत्तों के
लहराते रंग- बिरंगे फूलों के
पंखुरियों पर थिरकने वाली
तितलियों के
गली और गाँव के
समय की चुनौती के
धरती से अंकुरों के
फूटते समय के
मैं दूॅंगा तुम्हें शब्द
जो शक्ति दे विपत्ति में
समस्याओं के समाधान में
जो काट दे निरर्थक शब्दों को
सिलने से पहले जैसे काटता है
कपड़े को दर्जी
मैं शब्दकार हूँ
दूॅंगा मैं तुम्हें शब्द
स्थिर,
गतिशील
और आत्मीय |
संभावना सच हो सकती है
संभावना सच हो सकती है-
पेड़- पौधों की संख्या
असंख्य होने की,
शर्त यह है-
उन्हें खाद- युक्त मिट्टी एवं
पोषक-तत्वों की गारंटी मिले ।
संभावना सच हो सकती है-
पशु- पक्षियों की संख्या
असंख्य होने की,
शर्त यह है-
उन्हें अपने अंड़ों-बच्चों को
सुरक्षित स्थान पर
पलने- बढ़ने की गारंटी मिले ।
संभावना सच हो सकती है-
दिव्य मानवों की संख्या
असंख्य होने की,
शर्त यह है-
उन्हें अपने व अपने बच्चों की
सहजतापूर्ण परवरिश करने की
गारंटी मिले ।
संभावना सच हो सकती है-
समुद्र के मंथन की,
देव और दानव की
अलग- अलग
श्रम शक्ति की
धरती को आकाश तक
उठाने की
आकाश को धरती तक
लाने की
शर्त यह है-
अमृत के विभाजन की
सही- सही गारंटी मिले ।