1. पिता
केवल वृक्ष नहीं वटवृक्ष हो तुम।
जिस की शाखा मैं वह वृक्ष हो तुम।।
तुमने कितने नाजों से हमको पाला है।
जब हम टूटे तुम्हीं ने हमें संभाला है।।
जब घर से अकेले निकले थे तब भी तेरा साया था।
जब पड़ी विपत्ति हम पर तब तुम ही ने संभाला था।।
तुम्ही ने बचपन में मेरा पहला कदम उठाया था।
मैं भी कुछ हूं इस दुनिया में यह एहसास कराया था।।
मेरे अस्तित्व की खातिर तुम दुनिया से लड़ते हो।
मुझ पर कुछ भी आँच न आए हर पल इससे डरते हो।।
जब भी कोई कष्ट पड़े ढांढस तुम्ही बधाते हो।
उस विपदा से पार निकलना तुम्ही तो सिखलाते हो।।
मेरे भविष्य निर्माण की खातिर सब कुछ वार दिया तुमने।
इस दुनिया में मेरे लिए ही सब कुछ हार दिया तुमने।।
मैं अंशु तुम्हारा हूँ इसको कोई झुठला नहीं सकता।
मैं कभी तुम्हारे इस ऋण को चुका नहीं सकता।।
-विक्रांत राजपूत चम्बली
2. ऐसे होते हैं पिता
कुटुंब की छत ,
बच्चों की हिम्मत ,
मां का श्रृंगार ,
जीवन के कर्णधार ,
बरसात में छतरी ,
गृह की तिजोरी होते हैं पिता ।
खुदा की रहमत ,
छाया वाले दरख़्त ,
परिवार के कल्पतरु ,
तिमिर में रोशनी की लौ ,
मां की आंखों का काजल ,
खुशियों भरा बादल होते हैं पिता ।
निराशा को हटा , ऊर्जा भरते हैं पिता ,
उलझनों को सुलझाने में , मदद करते हैं पिता ।
जीवन को उचित दिशा देते हैं पिता ,
जिंदगी का मार्ग प्रशस्त करते हैं पिता ।
तिनका – तिनका जोड़ आशियाना बनाते हैं पिता ,
उसे अपनी मेहनत और त्याग से सजाते हैं पिता ।
बिना थके अपना हर धर्म निभाते हैं पिता ,
मुस्कुराते हुए अपना कर्म करते जाते हैं पिता ।
जिंदगी की तपिश को सहन करते हैं पिता ,
आशीर्वाद से नित हमारी झोली भरते हैं पिता ।
बच्चों के सपने अपनी आंखों में भर लेते हैं पिता ,
अपनी जमा – पूंजी बच्चों के नाम कर देते हैं पिता ।
बच्चों की तरक्की में सदैव खुश होते हैं पिता ,
” मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूं ” ऐसा कहते हैं पिता ।