बड़े मदारी अंधियारे हैं | आनंद रस | नवल किशोर गुप्त | आनंद अमित | हिन्दी श्री पब्लिकेशन 

आनंद रस

“बड़े मदारी अंधियारे हैं, अंधियारों को छलना होगा। अंगारों से आग लगेगी, दीपक बनकर जलना होगा।” 
इन पंक्तियों को पढ़कर पूरे विश्वास के साथ यह बात कही जा सकती है कि साहित्य जगत में एक दीपक और प्रकाशमान हो चुका है। अक्सर किसी बात की शुरुआत संभावनाओं से होती है परन्तु यहाँ पर मैं अपनी बात पूरे विश्वास से कह रहा हूँ क्योंकि आनंद प्रजापति “अमित” एक ऐसा नाम है जिनका काव्य संग्रह “आनंद रस” पढ़ने के बाद किसी को भी यह बात आसानी से समझ में आ सकती है कि आनंद जी की लेखनी कितनी सशक्त है।आनंद जी के अगर संक्षिप्त परिचय की बात करें तो कुछ बातें जो उल्लेखनीय हैं वह यह कि आप ने  एमबीए और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया हैं। आप की अब तक 2 कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें पहला “काव्य संग्रह-आनंद रस” तथा दूसरा “कहानी संग्रह-रेलवे फाटक” है इसके साथ ही साथ दर्जनों साझा संग्रह में भी आपकी रचनाएं प्रकाशित हो चुकी हैं। देश के विभिन्न राज्यों जैसे राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, आसाम आदि से आपको विभिन्न सम्मानों से नवाजा जा चुका है। कई  पत्रिकाओं में भी आपने संपादक तथा सह संपादक के रूप में उल्लेखनीय कार्य किए हैं।एक मुलाकात के दौरान आपने बड़े स्नेह से अपना काव्य संग्रह “आनंद रस” मुझे भेंट किया, जिसे पढ़ने के बाद मुझे ऐसा लगा किस पुस्तक पर थोड़ी सी चर्चा होनी चाहिए तो आइए थोड़ी बात करते हैं “आनंद रस” की – “आनंद रस” श्री आनंद प्रजापति जी का एक ऐसा काव्य संग्रह है जिसे पढ़कर यह एहसास होता है कि आपकी लेखनी दोहो, छंदों, ग़ज़लों और मुक्तकों में एक समान रूप से समर्थ है।यह काव्य संग्रह लगभग पाँच खंडों में बांटा हुआ है जिसमें 101-दोहे, 21-गीत, 21-छंद जिनमें कुंडलियां, चौपाई आदि शामिल हैं, 21-मुक्तक और 21-ग़ज़लें हैं।कुल मिला जुला कर यह कहा जाए अपने इस काव्य संग्रह के माध्यम से आनंद जी ने साहित्य जगत को स्वयं से परिचित कराया है कि आपकी लेखनी विभिन्न विधाओं में रचनाधर्मिता को निभाने के लिए समर्थ है और यह बात पूरी दृढ़ता से कही जा सकती है कि यह पुस्तक उन के इस उद्देश्य को पूर्ण करती है। इस काव्य संग्रह में सम्मिलित रचनाएं संवेदनाओं से भरपूर हैं। इसमें मानवीय जीवन के वह सारे पहलू हैं जिनका सरोकार मानवीय संवेदनाओं और उसके दिल से है।आनंद जी जब मानवीय मूल्यों में होते हुए हास् को देखते हैं तो वह अपने दोहों में लिखते हैं कि – 
वेदों में लिखी हुई लेकर के पहचान।मैंने दुनिया देख ली नहीं दिखा इंसान।। 
उनकी दृष्टि जब प्रकृति के होते हुए दोहन और अन्धे विकास की दौड़ में नदियों की दुर्दशा को देखती है तब वह लिखते हैं- 
कारखाने जब थे नहीं, तब बहता था क्षीर।कितना गंदा हो गया, अब गंगा का नीर।। 
आज शहरीकरण के दौर में व्यक्ति किस तरह से मानव से पाषाण हुआ चला जा रहा है अपने इस दर्द को वह निम्न पंक्तियों से व्यक्त करते हैं – 
पत्थर के हम हो गए, पत्थर की  छत छांव। घास फूस की छत जहाँ प्यार बसे उस गाँव।। 
आपके लिखे एक दोहे का उल्लेख मैं यहाँ अवश्य करना चाहूंगा, जो मुझे बहुत ही प्रभावित करता है और शायद आपने बाढ़ की विभीषिका को कितनी शिद्दत से महसूस किया है इस बात को भी दर्शाता है
थल पर जल का जलजला, जलद बड़ा घनघोर। जल ही जल दिखता मुझे, ढूँढूँ थल किस ओर।। 
अपने दोहों के माध्यम से ही आनंद जी इस बात पर भी पुरजोर देते हैं कि एक छोटी सी मुस्कान सौ मुसीबतों का हाल है दोहा कुछ इस प्रकार कि – 
लड़ने से कब हल मिला, बोलो रे नादान।हर मुश्किल का हल सखे, छोटी सी मुस्कान।। 
आप के गीतों के पर चर्चा करें तो उसमें भी सामाजिक दशा, मानवीय मूल्य का भरपूर वर्णन मिलता है इसमें वो लिखते हैं-बिखरा जाने कितनी बार, मेरे सपनों का संसार। 
समाज में व्याप्त शराब की लत को देखते हुए उन्होंने बखूबी व्यंगात्मक लहजे में की की कुछ पंक्तियां लिखीं 
हर इंसान की खातिर बहुत ही खराब है।फिर भी शहर शहर में बिकती शराब है। 


आनंद जी के गीतों में, उनकी रचना-धर्मिता में राष्ट्र-प्रेम की भी भरपूर झलक दिखती है। उनका एक गीत नन्हा सैनिक इस क्रम में अत्यंत पठनिय है।छंदों के रूप में भी आपने कुछ बहुत ही सरस कुंडलियां, चौपाइयां लिखी हैं। चौमासा भी अपने बखूबी लिखा है। आपकी कुंडलियों में एक कुंडली दहेज है जो पूरी तरह से अपना प्रभाव छोड़ती है। आपके मुक्तक भी एक से बढ़कर एक शानदार हैं। उनके बारे में तो कहना ही क्या।इस काव्य संग्रह की भाषा बहुत ही सहज और सरल है। इसमें कुछ रचनाएं जहाँ आधुनिक समाज से जुड़े हुए व्यक्तियों की चतुर मनोदशा और उनके दिल के जज्बातों की बात करती हैं, वहीं गाँव की माटी, गाँव के लोग और गरीब मजदूरों के दिल के भावों को भी बखूबी प्रकट करती हैं। आपकी रचनाओं में प्रेम भी है तो विरह भी है और व्यंग भी है।अन्त में श्री आनन्द प्रजापति “अमित” जी को हार्दिक बधाई एवं अनन्त शुभकामनाएं। आपकी अगली पुस्तक में प्रतीक्षारत आपका एक पाठक।

-नवल किशोर गुप्त,
वाराणसी

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