देश के जाने माने और चर्चित ग़ज़लकारों के ग़ज़ल संग्रह “ग़ज़ल एकादश” का विमोचन और ग़ज़लपाठ
लोकप्रिय जनवादी ग़ज़लकार डॉ डी एम मिश्र ग़ज़ल एकादश के संपादक
लोकप्रिय जनवादी ग़ज़लकार डॉ डी एम् मिश्र ग़ज़ल एकादश के संपादक
साहित्य लेखन के लिए साधना के साथ अपने समय को समझना ज़रूरी है- डॉ जीवन सिंह
ग़ज़ल जीवन के विविध आयामों को छू रही है- राम कुमार कृषक
ग़ज़ल एकादश का तेवर अन्य किताबों से अलग है और यही इसकी विशेषता है- शैलेन्द्र चौहान
मिर्ज़ापुर। देश के जाने माने और चर्चित ग़ज़लकारों के ग़ज़ल संग्रह ‘ग़ज़ल एकादश’ का ‘हिंदी श्री’ के पटल पर रविवार को विमोचन ऑनलाइन हुआ। इस कार्यक्रम में गजल संग्रह में शामिल सभी रचनाकार सम्मिलित हुए और उन्होंने अपने विचारों के साथ गजलें भी पढ़ीं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि देश के जाने माने साहित्यकार और आलोचक राजस्थान के डॉ. जीवन सिंह रहे। इसकी अध्यक्षता ‘अलाव’ पत्रिका के संपादक दिल्ली के रामकुमार कृषक ने की। संयोजन डॉ डी एम मिश्र व भोलानाथ कुशवाहा ने किया। संचालन आनंद अमित ने किया। विशिष्ट वक्ता शैलेंद्र चौहान रहे।
इस संग्रह की विशेषता यह है कि इसकी भूमिका डॉक्टर जीवन सिंह ने तो लिखी ही है इसके साथ ही 11 ग़ज़लकारों की गजलों के साथ 11 समीक्षकों ने भी इसमें अपनी टिप्पणी दी है। इसके संपादक जाने माने ग़ज़लकार डी एम मिश्र हैं। इसमें शामिल ग़ज़लकार और टिप्पणीकार हैं- कमल किशोर श्रमिक/डॉ प्रभा दीक्षित, सुरेंद्र श्लेष/शैलेन्द्र चौहान, रामकुमार कृषक/डॉ अनिल राय, डी एम मिश्र/डॉ जीवन सिंह, हरेराम समीप/डॉ वरुण कुमार तिवारी, शिवकुमार पराग/सलीम तन्हा, प्रभा दीक्षित/सुशील कुमार, दिलीप दर्श/कौशल किशोर, भावना/डॉ विज्ञान व्रत, पंकज कर्ण/डॉ भावना।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ जीवन सिंह ने कहा कि साहित्य लेखन के लिए साधना बहुत आवश्यक है और लेखक को अपने समय को समझना पड़ता है। हमारे शब्दों का संघर्ष इंसानियत और बराबरी के लिए है। हमारे सामने बराबरी के लिए चुनौतियां बहुत लंबे समय से खड़ी हैं जिसे लेखक को समझना होगा। इस ग़ज़ल संग्रह के रचनाकारों ने इन सभी बातों को उठाया है जिससे यह ग़ज़ल संग्रह अति महत्वपूर्ण है। अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार रामकुमार कृषक ने कहा कि आज ग़ज़ल जीवन के विविध आयामों को छू रही है अपनी यात्रा में ग़ज़ल आज के समय को प्रदर्शित करने में पूरी तरह सक्षम है और अपनी मारक क्षमता के चलते वह लोकप्रिय भी है। यह समय एक तरह से ग़ज़ल का है। विशिष्ट वक्ता शैलेन्द्र चौहान ने कहा कि इस ग़ज़ल संग्रह का तेवर अन्य किताबों से अलग है और यही इसकी विशेषता है।ग़ज़ल एकादश के संपादक डॉ डी एम मिश्र ने कहा कि देश के तमाम ग़ज़लकारों के बीच से उत्कृष्ट ग़ज़लकारों को चुनना और उनकी रचनाएँ लेकर शीघ्र प्रकाशित कर पाना मेरे लिए चुनौती थी जो आप सभी के सहयोग से कुशलतापूर्वक सम्पन्न हुआ।इस दौरान ग़ज़ल एकादश में सम्मिलित ग़ज़लकारों ने ग़ज़लपाठ किया। रामकुमार कृषक ने सुनाया- हमने स्याही से उजाला लिक्खा। उनका कहना है कि काला लिक्खा।। राम मेश्राम ने पढ़ा- मौत का खौफ जनता से राजा को है। और जनता को किससे डरा चाहिए। भोलानाथ कुशवाहा ने सुनाया- इतनी दूरी ठीक नहीं, ये मजबूरी ठीक नहीं। दिन को रात बताओगे, ये बरजोरी ठीक नहीं। डॉ डी एम मिश्र ने पढ़ा- उजड़ रहा है चमन इसको बचाऊँ कैसे। लगी है आग मगर आग बुझाऊँ कैसे। डॉ प्रभा दीक्षित ने कहा- हर नजर भींगी हुई है बरगदों की छाँव में। एक ऐसा दर्द बरसा है हमारे गांव में। हरे राम समीप ने सुनाया- झुलसती धूप थकते पाँव मीलों तक नहीं पानी। बताओ तो कहां धोऊँ सफर की ये परेशानी। शिवकुमार पराग ने सुनाया- पाँव मेरे फिसल गए होते। मेरी कविता मुझे बचाती रही। भावना ने पढ़ा- नदी वह गाँव वाली आजकल गमगीन लगती है। डॉ पंकज कर्ण ने सुनाया- वो सियासी हैं वो बातों को बदल कहते हैं। हम तो भूख और बेबसी को ग़ज़ल कहते हैं। कार्यक्रम को बड़ी संख्या में लोगों ने पसंद किया और अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। हिंदी श्री की संस्थापिका कुमारी सृष्टि राज ने सभी का आभार व्यक्त किया।
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