प्रेमचंद को जीवन की गहरी समझ थी ।
प्रेमचंद को जीवन की गहरी समझ थी । आप ज्यों-ज्यों सयाने होंगे, आपके पास एक संवेदनशील हृदय है तो निश्चित ही इस जीवन का रहस्य साफ- साफ दिखाई देगा । मनुष्यता के ऊँचे शिखर पर बैठे प्रेमचंद्र का हृदय दीपक की भाँति जल रहा था और अँधेरे को रोशनी से भरते जा रहा था ताकि मनुष्य न भ्रम में रहे और न ही वह कोई तुच्छ हरकत करे । यही तो मनुष्यता है जो आपको हर बार रोकता है कुछ गलत करने से । आप किसी को झांसा नहीं दे सकते और न ही किसी को अपने लाभ के लिए खाई में धकेल सकते हैं । प्रेमचंद आज हमें याद आ रहे हैं तो इसकी वजह है ।
कहानी या उपन्यास तो वे लिखते ही थे , किंतु यह लिखना ही उनके लिए पर्याप्त नहीं था, बल्कि मनुष्य को सच्चा बनाना और खुद भी सच्चा होना उनका और उनके लेखन का मकसद था । प्रेमचंद आदमी के रूप में सच्चे हृदय के मालिक थे । आज उनकी जयंती है । वे याद आ रहे हैं । उनपर मैं काम भी किया । किंतु वे अब पहले से ज्यादा समझ में आ रहे हैं ।
आज यह दुनिया जबकि पहले से कहीं ज्यादा मतलबी होती जा रही है । न्याय व्यवस्था लगभग चौपट है । आए दिन हत्या, बलात्कार, लूट, धोखा और धन कमाने या हड़पने की घटनाएँ चारों तरफ घट रही हैं। नेता अपने को भगवान समझ रहे हैं । कई क्रिमनल और माफिया सफेद लबादा ओढ़कर लोकतंत्र को खोखला कर रहे हैं और उसे जीभ बिरा रहे हैं । तब प्रेमचंद ठीक- ठीक समझ में आ रहे हैं । आज चारों तरफ हाहाकार मचा है । आतंकवाद, उग्रवाद तो कहीं गुंडागर्दी फल फूल रहे हैं । एक चेहरे के भीतर कई चेहरे और वीभत्स चेहरे खौफजदा माहौल निर्मित कर रहे हैं, किसी कमजोर और गरीब की आवाज , उसकी बोलती बंद कर देने के लिए आमादा है । ऐसी घड़ी में प्रेमचंद बरबस याद आ रहे हैं । बेरोजगारी, भूख और समान अवसर की ख्वाबों के बीच कम वय में ही युवाओं के सपने दम तोड़ते नजर आ रहे हैं । ये सब देखकर हम प्रेमचंद को मुस्कुराते हुए नहीं देख पा रहे हैं ।

गलत संगत और पूँजी की विभीषिका बीच मासूम बच्चियों का यौन शोषण और उनकी हत्या का सिलसिला देखकर ऐसा लगता है हमारा भारत कहाँ पहुँच गया ! जहाँ हमें कभी नहीं जाना था हम वहाँ पहुँच गए । कुछ मामले में अपना मुल्क जरूर मजबूत हुआ है पर मानवीय मूल्यों को गंवाकर हमने कोई बड़ा जीत हासिल नहीं कर पाए हैं । हमारी बेटियाँ बढ तो रही हैं, पर एक डर हमें खाए जा रहा है । हम उन्हें सुरक्षा तक नहीं दे पा रहे हैं ।
किसानों की हालत तो पूछिए मत । रोग और गरीबी उन्हें जीने नहीं दे रही है । कई बाबाओं और विद्यायकों द्वारा उनकी जमीन उनसे छीनी जा रही है । कई को मौत की घाट उतार दिया जा रहा है । प्रेमचंद किसानों के लेखक थे, अद्वितीय लेखक । आज लेखन तो बहुत हो रहा है । पर प्रेमचंद कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं । अब तो योनी सत्ता का विमर्श चल रहा है जैसे भूख , शोषण और अन्याय पर हम विजय पा गए हैं!
प्रेमचंद आप कल भी याद आएँगे । क्योंकि जब- जब कोई अन्याय और अत्याचार का शिकार होगा । जब कोई मासूम और सच्चा आदमी तबाह और बर्बाद किया जाएगा । जब कोई सरकार गरीबों के खिलाफ जाएगी या कानून बनाएनी । तब- तब प्रेमचंद याद आएँगे ।
प्रेमचंद की जयंती पर उन्हें मेरा शत-शत नमन !