अधिदर्शक जी द्वारा रचित पुस्तक ‘आपके हाथ में गुलाब आए’ | हिंदी श्री पब्लिकेशन

आपके हाथ में गुलाब आए

अधिदर्शक का ये दीवान पिछली सदी के आखिरी दो दशकों में तेजी से बदल हिन्दुस्तान की सांस्कृतिक राजनैतिक- सामाजिक छटपटाहट को बड़ी शाइस्तगी से बयान करता है। उनकी ग़जलों में हकीकत ज्यादा है और फ़साना कम है। ये गज़लें जैसे टैगोर के ‘भयमुक्त ‘चित्र’ का वितान रचती हैं। इन गज़लों में जो कशिश है वो उनकी जाती ज़िन्दगी में आए भारी उतार-चढ़ाव से उपजी हैं।
इनके व्यक्तिगत अनुभव का दायरा बड़ा ही विस्तृत है। सन 1970 में सिंचाई विभाग (उत्तरकाशी) से शुरू करके राज्य सीमेंट निगम की चुर्क, चुनार, डाला इकाईयों में सन 1980 तक बतौर सुपरवाइजर / इंजीनियर सेवायें दीं। आपातकाल के दौरान एक वर्ष नैनी में भी कार्यरत रहे। निजी कारणों से सन 1980 में त्यागपत्र देने के बाद पत्रकारिता से जुड़े और स्वतंत्र पत्रकार की हैसियत से अब 75 वर्ष की अवस्था में भी संचार माध्यमों जरिये आज भी लेखन कार्य है।
अधिदर्शक की शायरी उनके विस्तृत अनुभव की, उनके अर्न्तमन की बड़ी ही तवील कहानी है। उनका ये दीवान इस बात की मिसाल भी है कि कैसे बर-खिलाफ माहौल में भी उम्दा शायरी के मयार को जिन्दा रखा जा सकता है।

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मुझे खुशी है कि लंबे समय के बाद ही सही आपका गजल संग्रह “आपके हाथ में गुलाब आए” प्रकाशित हुआ। प्रस्तुत गजल संग्रह की तमाम ग़ज़लों ने मुझे बहुत गहरे से प्रभावित किया है और मैं मानने लगा हूं कि हम लोगों के मित्रों में कोई अधिदर्शक जैसा भी गजलकार है जो गजलों के माध्यम से समय को पकड़ सकता है उसे विश्लेषित कर सकता है तथा विखंडित भी। समय को विखंडित करते हुए खुद अपने आप को भी विखंडित कर सकता है। अधिदर्शक भाई का समय विखंडित समय है वह भी इसलिए कि वे खुद को भी विखंडित करने में, तोड़ने में, राजनीतिक कौतुकों को समझने में यह नहीं देखते कि वे कितना टूट रहे हैं? अपने समय को तोड़ना खुद को तोड़ने जैसा होता है अगर ऐसा ना होता तो उनके कई गजल संग्रह अब तक हम लोग पढ़ चुके होते। यह तो मैं नहीं कहूंगा कि उससे हमारा कितना नुकसान हुआ पर यह जरूर कहूंगा कि उन्होंने समय का नुकसान किया है एक ऐसे समय का, एक ऐसे पाठ का जिसका पढ़ा जाना बहुत ही अनिवार्य था पर ऐसा नहीं हो पाया। बहर हाल जो गुजर गया उसके बारे में क्या बात करना । आइए हम सब मिलकर ‘आपके हाथ में गुलाब आये’ गजल संकलन को पढ़ें तथा गुने कि यह जो समय है कितना कठोर है। विश्वास कि प्रस्तुत गजल संग्रह बहुत ही गंभीरता से पढ़ा जाएगा तथा एक टूटे हुए आदमी का आख्यान गंभीरता से लिया जाएगा।
-रामनाथ शिवेंद्र

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