मेरा बचपन मेरा गाँव पुस्तक के बारे में इसके लेखक श्री नन्हें सिंह ठाकुर की अपनी बात-
इस कृति में बीस संस्मरण निबंधों के माध्यम से मैंने अपने बचपन और गांव की स्मृतियों को अपनी संवेदना के साथ उकेरने का प्रयास किया है,एक पाठक के रूप में इन स्मृति निबंधों को पढ़कर यदि आप भी अपने बचपन को याद करते हैं,तो इस पुस्तक का यही पारितोषिक मेरे लिए होगा। जरूर पढ़े और प्रतिक्रिया देने के लिए मेरे परिचय में लिखें दूरभाष नंबर पर दो शब्द टाइप कर व्हाट एप भेजे।
मुझे याद है विगत कुछ माह पहले हिंदी के प्रसिद्ध ललित निबंधकार डॉ श्यामसुंदर दुबे जी की आत्मकथा ‘अटकते भटकते ‘ जब पढ़ी तो आत्मकथा बहुत ही रोचक लगी पढ़ते हुए ऐसे लगा जैसे उनका एक जीवन मैंने भी जी लिया हो। आत्मकथा की संक्षेपिका मैंने लिखी और हटा जाकर दुबे जी को दिखाई तो उन्होंने आशीष देते हुए कहा था- हमारे पास अनुभवों का जो संचयन है,उसे शब्द शिल्प से गढकर लिखते रहना, यही साहित्यिक साधना है। उनसे ही प्रेरित यह कृति आपके हाथों सुपुर्द करते हुए खुश हूं, उनका आभार प्रदर्शन करना ठीक वैसा लगता है जैसे सूर्य को दीपक अर्पित करना है।
साहित्य जगत में शोसल मीडिया पर सक्रिय साहित्य उपवन रचनाकार, साहित्य संगम और राष्ट्रीय तूलिका मंच के सभी संचालक एवं सदस्यों का भी आभारी हूं जहां से मैं रोज कुछ न कुछ सीख रहा हूं। मेरे अग्रज गुरुवत डॉ एन आर राठौर, पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी डॉ पीएल शर्मा जैसे व्यक्तित्वों का आभारी हूं जो सदैव प्रोत्साहन देते हैं। हिंदी श्री प्रकाशन का भी आभारी हूं जिन्होंने अल्प समय में पुस्तक तैयार कर अमेज़न और हिंदी श्री बेबसाइड पर उपलब्ध कराई है।