ममतामयी मां की आंचल – विपिन चौबे
कहते हैं मां के ऊपर काव्य लिखना बहुत ही सरल है पर लिखते समय लिखने वाले की लेखनी भी कांप उठती है |
मां शब्द जरूर छोटा है परंतु उसका अर्थ उतना ही व्यापक है जितनी के पृथ्वी से सूर्य की दूरी |
हर एक युग में मां की अत्यंत भूमिका रही है वह चाहे द्वापर में कृष्ण को जन्म देने वाली मां देवकी हो, चाहे त्रेता में मर्यादा पुरुषोत्तम राम को जन्म देने वाली मां कौशल्या हो सभी माताओं ने पुत्र वियोग की पीड़ा सही है |
इसी के साथ मैं अपनी पहली गुरु (मां) के पावन श्री चरणों का ध्यान करते हुए तथा गुरुओं के आशीर्वाद की कृपा से इस काव्य की कुछ पंक्तियां आप लोगों के मध्य प्रोषित कर रहा हूं | एवं आपसे आशा करता हूं कि इस काव्य में हुई त्रुटियों से आप हमें जरूर अवगत कराएंगे |
!! ममतामयी मां की आंचल!!
मैं अपने छोटे मुख से कैसे करूं तेरा गुणगान ,
मां तेरी ममता की आगे फीका सा लगता भगवान।
तूने ही तो हाथ पकड़कर मां चलना मुझे सिखाया है ,
व्यवहारों की परिभाषा को आप ही ने समझाया है||
बस एक दुआ तुझसे मांगू मेरी गलती को भुला देना ,
जब छत की छाया सर से जाए अपनी आंचल मां ओढ़ा देना |
तेरी लाड और प्यार मां याद बहुत अब आती है ,
चारदीवारियों के भीतर तेरी याद बहुत ही सताती है||
मां तू जन्नत की फूल है ,
प्यार करना तेरा उसूल है|
दुनिया की मोहब्बत फिजूल है, मां को नाराज करना दुनिया की सबसे बड़ी भूल है |
मां के कदमों की मिट्टी जन्नत की धूल है ,
मां की हर दुआ ईश्वर को कुबूल है||
ममतामयी आंचल है जिनकी ,
जैसे गौरी और जानकी !
खुशियों की तो यह मोती,
मां की आंखों में करुणा की ज्योति||
इस काव्य के माध्यम से मां तेरा ही गुणगान करूं,
रोक कर इस लेखनी को तेरे चरणों में प्रणाम करूं।।
:- विपिन चौबे
(काशी हिन्दू विश्वविद्यालय)
hindishree@gmail.com