2. पिता की कमी
आज आँखों में आँसू की धारा बह आती है।
आज पिता की याद हमें रूलाती है।
कैसी ये ईश्वर की इच्छा है।
देख हमारी खुशियों को यू छीन लिया ।
आज याद पिता की यादों को याद कर ।
अन्दर से अकेला हो जाता हू़ँ।
आज पिता की तलाश में।
भटकता मुसाफिर बन जाता हू़ँ।
आज किसी की ऩजर लग आई ।
माँ के इस सलोनी श्रृंगार को।
माँ की आँसूओं की मोती की धारा का।
मैं बाँध बन जाता हू़ँऔर दादी के दुखों का ।
मैं आँधी बन जाता हू़ँ।
आज पिता की याद मुझें ।
ऐसा रूलाती है जैसे सावन में।
वर्षा की बूँदे हमें भीगाती है।
देख अपनें मित्रों के पिता को।
मैं भी पिता होने की आश करता हूँ।
जब पिता ने हमकों यू छोडा़ था।
तब से माँ ही हमारे पिता बन गई ।
माँ का यू हमारे लिऐ इन ।
संघर्षो को देखकर मैंसोचता हूँ
काश मैं भी बडा़ होता और माँ की मदद कर पाता ।