राहुल भट्ट की 5 रचनाएं | हिन्दी श्री

राहुल भट्ट

3.मधुशाला

पत्थर की यह शाला की
,मिट्टी का यह प्याला ।
जब मनुष्य पत्थर और मिट्टी के ,
प्यालें से पिऐगा नीर तो,
देख पड़ेगी यह मधुशाला ।
पीपल के पत्तें की मंद – मंद पवन,
की ठंडक से धन्य हो जाता मन मेरा ।
रो खुशी के आँसूओं की धारा से,
भर उठा यह प्याला ,
तब देख पड़ेगी यह मधुशाला ।
गगन के गड़- गड़हाट से।
भू- धरा को वर्षा से।
धो डाला सारी निर्धनता को,
आश हमारी इस वर्षा से ।
भर मेरी यह निर्धनता का प्याला ,
और देखा इस मधुशाला की मधु को।
सुन मधु ने मेरी निर्धनता के ,
इस उपवन के पुष्प से पराग ,
इकत्र कर मेरे दुखों को पतझड़ बना डाला ।

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