5.महामारी
कैसी महामारी का ये प्रकोप छाया है।
मिलती यारी रिश्तेदारी अब डर का कहर लाई है।
न अपनों से नहीं मिलने देती यह महामारी ।
सड़को की वो भीड़ अब शमशानों में ले आई ।
बच्चे – बूढे़ – जवानों की लाशों ने शमशानों में ।
यू मौत का तांडव लगाया है।
शमशानों की धरा भी अब रोती आ चली है।
कुंभ लग आया है शमशानों में।
रोते – रोते आँखों में मोती बह आऐ है।
धरा की हरियाली भी अब रंगहीन हो आई है।
किसी के बहन का यह भाई इस महामारी में खोया है।
छीना किसी बहु ने सुहाग इस महामारी में।
आज भयभीत हुई धरा भी रोती चली आई है।
कैसी दहशत लाई यह महामारी।
मौत का पैगाम लाई यह महामारी ।
हँसते – खिलते खलयानों को रक्ताभ बना डाला इस महामारी ने।
रक्ताभ से भरी धरा ने आज तबाही की दहशत लाई है।
रोती,बिलकती धरा के मोती की बूँदों ने।
कहीं गगन को बरसने को मजबूर दिया है।
आज गगन , प्रकृति रोती है।इस महामारी की दहशत से।
आशाएँ खो डाली जीने की आज हमनें इस महामारी में