चुनाव क्यों और कैसे? ( Chunav Kyo Aur Kaise )
सबसे पहले हमें चुनाव का अर्थ, तात्पर्य तथा परिभाषा को समझना जरूरी है, कि वास्तविकता के ध्येय से चुनाव क्या है ? किसे चुनना है ? क्यों चुनना है ? इस चुनाव से सम्बन्धित व्यक्ति की हमारे भारतवर्ष जैसे गणतांत्रिक देश के लिए क्या जवाबदेही है ? चुनाव का मतलब है निर्णय लेना, छांटना, पसंद करना तथा अपने सही विचारों का मंथन करना. चुनाव किसी भी चीज या व्यक्ति का हो सकता है पर निर्णय तो मनुष्य को अपनी तीक्ष्ण बुद्धि के द्वारा ही लेना होता है. चुनाव या चुनाव की प्रक्रिया विधि सम्पूर्ण विश्व तथा भारतवर्ष जैसे प्रजातंत्र अथवा गणतांत्रिक देश में यह एक प्रथा और परम्परा रही है. हमें चुनाव के विषय में बडी़ ही गहराई से सोचने की आवश्यकता है. विशेषकर के देश की राजनीति एवं राजनैतिक पार्टीयाँ और राजनेताओं का चुनाव प्रक्रिया से सम्बन्धित हर पहलू, क्योंकि भारतवर्ष जैसे गणतांत्रिक देश में हमारी जनता द्वारा चुने गये नेता-मन्त्री को हम अपना प्रतिनीधि समझकर देश की बागडोर उनके हाथों में थमा देते है. ताकि जनता-जनार्दन की आवाज को संसद तक पहुँचाये और उनकी समस्या का सामाधान आसानी से करा सके.
और यही अगर हमारे द्वारे चुना गया प्रतिनीधि गलत हुआ तो आम जनता को प्राप्त होगा दुर्भाग्य से पूर्ण एक अंधकार भरा भ्रष्ट शासन. हम अगर भारतवर्ष जैसे गणतांत्रिक देश में सुशासन तथा भ्रष्टाचार से मुक्त नया सुरज उगाना चाहते है तो चुनाव की विधी को समझना होगा. अपने भाई-भतिजावाद वाली व्यवस्था को बदलना होगा और चुनना होगा एक उचित प्रतिनीधि जो आम जनता के दुःख-दर्द तथा तकलिफों से भरी भावनारूपी जीवन को समझ सके. जनता की समस्याओं को दिल तथा दिमाग से अनुभव कर सकें.
एक साधारण सा चिन्तन कीजिए कि जब हम बाजार से एक मिट्टी का बरतन खरीदने जाते है तो उसे भी सात बार ठोक-पीट कर बजाकर देखते हैं कि उसमें कोई दरार या छेद तो नहीं ? और बाजार में कभी-कभी कपडा़ खरिदने से पहले दुकानदार से रंग न उड़ने और मजबुती की गारंटी मांगते है. जो कि बहुत ही आम बात है पर मन में बहुत ही बडा़ चिन्तन करते हैं. ठीक यही प्रक्रिया विधी राजनैतिक चुनाव में अपनाई जाय तो एक सही चरित्रवान प्रतिनीधि का चुनाव हम आसानी से कर सकते हैं. जैसे हम अपना अनमौल मत देने से पहले यह विचार करें कि हम मत किसे दे रहे हैं ? क्यों दे रहे हैं ? इसका परिणाम क्या होगा ? क्या देश या राज्य का भविष्य इसके हाथ में सुरक्षित होगा या नहीं ? इसके शासनकाल में जनता सुख-शन्ति से रह पायेगी या नहीं ? उदाहरण के लिए जिस प्रतिनीधि को हम चुन रहें है वह ईमानदार, चरित्रवान, शिक्षित, बुद्धीजीवि, लोगों का दुःख-दर्द समझने वाला समाज सेवक है अथवा नहीं. इसके बाद जनता-जनार्दन अपने दिल को छोड़कर दिमाग का सही इस्तेमाल करें और देश तथा राज्य की बागडोर एक सही ईमानदार भ्रष्टाचार से मुक्त प्रतिनीधि के हाथ में दें.
यही हमारी आम जनता से आशा रहेगी।
“जय हिंद जय भारत”
-मनोज शर्मा उर्फ आरके मनोज
सिलीगुड़ी पश्चिम बंगाल