वेदना | कहीं पर संवेदनाएं है | 2 कविता | मनीष जौनपुरी

manish jaunpuri

1.

कहीं पर संवेदनाएं है।
कहीं पर संभावनाएं है।
आहत हुई आत्माओं से,
घर हमने बनाएं है।
विषाद अपना है।
समुद्र के दोनों छोर तक।
देखता हूं जिस तरफ़,
चाहे जिस ओर तक।
तिनके का एक सहारा,
कर सकता है पार मुझे।
उम्मीद के इस हर्ष ने,
तोड़ा है कई बार मुझे।
इतने शब्द कहां है।
जिससे मैं कह सकूं,
वो वेदना,जो जहां है।।

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2.

आईना… देख.. मैंने, ख़ुद से पूछा सवाल।
अब तू ही बता दे,क्या है मेरा हाल।।
आईना ने कहा..,मुझमें तेरी तस्वीर है।
तू जहां है ,……….. वही तेरी तकदीर है।।
किस्मतो का लिखा,तू मिटा न सकेगा।
जो है ही नही, तेरा,उसे पा न सकेगा।।
विन्नते चाहे कर लो, चाहें लाखों करम।
छोड़ दो तुम ये, जो है माया भरम।।
वक्त के साये में, लिपट…… जाओगे।
बिन..पहचान. खुद, सिमट……जाओगे।।
पूछते – पूछते सारे, हल मिल गए…!
अश्रु… आंखों.. में..,अधर ढहर से गए।।

Writer- Manish Jaunpuri

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