अमानत
हम अमानत किसी और की थे, खुद को, कभी चाह ही ना सके उनको पाना था या स्वयं को खोना हिसाब इसका हम लगा ही ना सके किस्से जिनके कल हमनें सुने थे सुनकर उनको, भुला ही ना सके बातों से इश्क़, सबको कहाँ होता हम चेहरा उनका दिखा ही ना सके लिखने को बातें […]
हम अमानत किसी और की थे, खुद को, कभी चाह ही ना सके उनको पाना था या स्वयं को खोना हिसाब इसका हम लगा ही ना सके किस्से जिनके कल हमनें सुने थे सुनकर उनको, भुला ही ना सके बातों से इश्क़, सबको कहाँ होता हम चेहरा उनका दिखा ही ना सके लिखने को बातें […]
शब्द की महिमा भाव की अभिव्यक्ति है शब्द,मानो इसको जैसे अब्द।इनसे जुड़कर वाक्य है बनता।मन के भाव जो व्यक्त है करता।आगे बढ़ा तो बन गया लेख,बड़ी- बड़ी घटना का किया उल्लेख।घटना जुड़- जुड़ बन गई पुस्तक,किस्सा-कहानी साथ में मुक्तक।दोहा, सोरठा, रोला इनसे,ग्रंथ ,उपनिषद भी हैं जिनसे।किंतु यदि ना हों विषयोचित,लेख परत बन होते उपेक्षित।उचित जगह
ममतामयी मां की आंचल – विपिन चौबे कहते हैं मां के ऊपर काव्य लिखना बहुत ही सरल है पर लिखते समय लिखने वाले की लेखनी भी कांप उठती है | मां शब्द जरूर छोटा है परंतु उसका अर्थ उतना ही व्यापक है जितनी के पृथ्वी से सूर्य की दूरी | हर एक युग में मां
जय-जय बागेश्वर जी,जय-जय बागेश्वर जी।सबके विपत्ति हरो हैं ,जय बागेश्वर जीजय-जय बागेश्वर जी,जय-जय बागेश्वर जी। पान, फूल अरु मोदक भाते अरु मेवा।सब सन्तन मिल करते,बाला की सेवा।।जय-जय बागेश्वर जी,जय-जय बागेश्वर जी। सब भक्तन पे तुम्हरो दृष्टि गड़ी रहती।रात्रि-दिवस कोई हो कोइ घड़ी रहती।।जय-जय बागेश्वर जी,जय-जय बागेश्वर जी। अनुकम्पित,अनुरागी जो इहवाँ आया।खाली हाथ न लौटा झोली
शिव प्रकाश ‘साहित्य’ | बागेश्वर जी पर रचित रचना | हिन्दी श्री Read More »
करवा चौथ मेरे सर की कसम मैं मिलूंगी सनमआप मिलने का हमसे सौगंध खाईए बाती की भांति मै जलूंगी सनमहर जन्म में दीपक बन आ जाइएकपोल है लाल सुर्ख लाल रुखसार हैहैं अद्भुत ये छवि दर्पण शर्मसार हैकेश काले कटी पर बलखाते हुएबातें करती हूं खुद से सकुचाते हुएधड़कन और सांसों में समा जाइएव्याकुल है मनवा
करवा चौथ पर डॉ बीना सिंह “रागी ” की रचना | हिन्दी श्री Read More »
कविता- बौद्धिवृक्ष के नीचे बौद्धिवृक्ष के नीचे —-मैं तथागत हूँ —-तथा आगत , तथा गत ।बोधिसत्व से बुद्ध बनने की अंतर्यात्रातय होती है असंख्य जन्मों में ।ऊर्ध्वग ज्योति – शिखाएक दिन निर्वाण प्राप्त कर लेती है औरभोर का तारा डूबने के साथ हीकुछ डूब जाता है अपने भीतर ।अपने भीतर देखना ही तो विपश्यना है
बौद्धिवृक्ष के नीचे | अजित कुमार राय | हिन्दी श्री hindi shree Read More »
1. गुरु गुरु तुम दीपक मैं अंधकार ,किए हैं मुझपे आप उपकार, पड़ा है मुझपर ज्ञान प्रकाश,बना है जीवन ये उपवास, करें नित मुझ पर बस उपकार ,सजे मेरा जीवन घर द्वार, गुरु से मिले जो ज्ञान नूर,हो जाऊं मैं जहां में मशहूर गुरु से मिले हैं जो मार्गदर्शन,हो गए हैं मुझे भगवान के दर्शन
चुनाव क्यों और कैसे? ( Chunav Kyo Aur Kaise ) सबसे पहले हमें चुनाव का अर्थ, तात्पर्य तथा परिभाषा को समझना जरूरी है, कि वास्तविकता के ध्येय से चुनाव क्या है ? किसे चुनना है ? क्यों चुनना है ? इस चुनाव से सम्बन्धित व्यक्ति की हमारे भारतवर्ष जैसे गणतांत्रिक देश के लिए क्या जवाबदेही
चुनाव क्यों और कैसे | Chunav Kyo Aur Kaise | मनोज शर्मा | हिन्दी श्री पब्लिकेशन Read More »
1. योग-दिवस जैष्ठ शुक्ल , एकादशी , चंद्रवार की भोरआज विश्व में उठ रहा,योगदिवस का शोरयोगदिवस का शोर , शोर क्या महाशोर हैआज हिन्द के हाथ में जिसकी मूल डोर है योग किया तो शिवशंकर ,महादेव कहलाएउसी योग के बली कन्हैया,योगेश्वर बनपाएयोगेश्वर बन पाए कीना , महायोग हनुमानाउसीयोग से रामदेव को,जाने आज जमाना रामूभैया अकट
योग दिवस पर लिखित रचनाएं | हिन्दी श्री पब्लिकेशन Read More »
1. पिता केवल वृक्ष नहीं वटवृक्ष हो तुम।जिस की शाखा मैं वह वृक्ष हो तुम।। तुमने कितने नाजों से हमको पाला है।जब हम टूटे तुम्हीं ने हमें संभाला है।। जब घर से अकेले निकले थे तब भी तेरा साया था।जब पड़ी विपत्ति हम पर तब तुम ही ने संभाला था।। तुम्ही ने बचपन में मेरा
पिता दिवस पर बेहतरीन कवितायें | हिन्दी श्री पब्लिकैशन Read More »