हर आदमी यह सोचता | 5 मुनि शेखर छन्द | Santosh Kumar Prajapati | Mahoba

संतोष कुमार माधव

मुनि शेखर छन्द

20 वर्णी वर्णिक छन्द (2-2 चरण सम तुकान्त,अंकावली- 112 121 121 211 212 112 12 )

1.

हर आदमी यह सोचता,अब कुर्सियों पर राज हो ।
मन का सदा सबके करें,नव साज ही चहुँ साज हो ।। 
मुख से कहें कुछ और ये,इनके हिया कुछ और ही ।
मत पा लिए जयश्री मिली,फिर हो गए सिरमौर भी ।।

2.

कब क्या कहा मन से उड़ा,कुछ ध्यान है इनको नहीं ।
पग भी पड़े जिनके कभी, पहचानते तिनको नहीं ।।
अब जो कहें वह ही भला, कल की जरूरत क्या रही ।
खुद को सिकन्दर मानते,फल की जरूरत क्या रही ।।

3.

कितना भरा मद साथियो, यह कुर्सियाँ जिसकी रहीं ।
इतिहास भी पढ़ लो जरा, फिर बोलिए किसकी रहीं ।।
पद भी गया धन भी गया,मय में सगा व्यवहार भी ।
जिनके कभी तुम खास थे, उनकी भली मनुहार भी ।।

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4.

गिनती नहीं कितने मरे,नृप धीर थे बलवान भी ।
भुज शीश थे जिनके कई,तन भी महा धनवान भी ।।
महिमा मृदा सब ही मिली, अवशेष क्या जग जानता ।
कथनी वही करनी रही, जन आज भी नत मानता ।।

5.

नभ में उड़ो निज यान ले, वसुधा नहीं पर भूलना ।
वह डाल ही मत काटना, जिसमें कभी तुम झूलना ।।
तजना नहीं वह गोद जो,शिशुकाल में पलना बना ।
जन संघ को ठगना नहीं, जिससे तुम्हें चलना बना ।।

Writter- Santosh Kumar Prajapati

 Santosh Kumar Prajapati, Mahoba
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