वेदना | कहीं पर संवेदनाएं है | 2 कविता | मनीष जौनपुरी
1. कहीं पर संवेदनाएं है।कहीं पर संभावनाएं है।आहत हुई आत्माओं से,घर हमने बनाएं है।विषाद अपना है।समुद्र के दोनों छोर तक।देखता हूं जिस तरफ़,चाहे जिस ओर तक।तिनके का एक सहारा,कर सकता है पार मुझे।उम्मीद के इस हर्ष ने,तोड़ा है कई बार मुझे।इतने शब्द कहां है।जिससे मैं कह सकूं,वो वेदना,जो जहां है।। 2. आईना… देख.. मैंने, ख़ुद […]
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