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शीघ्र प्रकाशित होने वाली है आयुष्मती आयुष की “लॉक डाउन पार्क” ( Lock Down Park ) काव्य संग्रह

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आयुष्मती आयुष

शीघ्र प्रकाशित होने वाली आयुष्मती आयुष की “लॉक डाउन पार्क” ( Lock Down Park ) काव्य संग्रह के बारे में डॉ अनुराधा शुक्ला मिश्रा के विचार

परम्परा ? परिपाटी ? प्राण रक्षा ?

सुयोग से बहन आयुष की रचनाओं पर दृष्टि डालने का अवसर मिला । परिपाटी के तहत “दो शब्दों” के अनुरोध के साथ । मैंने किंचित असमंजस्य जन्य जड़ता का अनुभव किया कि क्या लिखूँ ?——

आलोचना, समालोचना अथवा प्रशंसा ? और तीनों ही परिस्थितियों में मुझे अधूरेपन और अन्याय की अनुभूति हुई ।

आयुष्मती आयुष
lock down park by Ayushmati Ayush

कुछ लिखने के पहले मेरे मन – मस्तिष्क में प्रारंभ में लिखे शब्द कौंध गए । परम्परा और परिपाटी को हर युग में टूटने का और फिर जुड़ कर नया रूप धारण करने का आशीर्वाद प्राप्त है और ये दोनों इसी रूप में अजर – अमर रहती हैं —- कभी विकृतियों के साथ तो कभी परिष्कृतियों के साथ । जहाँ इन दोनों में विकृति और परिष्कार को स्थान नहीं मिला वहाँ नारी प्राणदायिनी माँ के रूप में रूपांतरित हुई और तब एक शिशु के रूप में सृष्टि का विस्तार हुआ, होता रहेगा । युगों – युगों की यही परम्परा – यही परिपाटी है ।

अब प्रश्न यह उठता है कि उक्त बातों से इन रचनाओं का क्या सम्बंध ? सम्बंध है —– आज जिस प्रकार हिन्दी अपनी अंतिम सांसें गिन रही है, उसके प्राण अटके हुए हैं, सांसें रुक – रुक जा रही हैं तब साँसों को चलाए रखना, प्राण को बचा लेना अति आवश्यक है । आयुष की रचनाओं को मैं इसी दृष्टिकोण से देखना उचित समझूंगी । साहित्य के माप – दंड पर तौलना बेईमानी होगी तो कवयित्रि के साथ अन्याय भी । इनकी रचनाएँ माँ के हृदय के उद्गार हैं और माँ का एक ही ध्येय होता है अपने शिशु के स्वास्थ्य के प्रति सतत सजग रहना और यही प्रयत्न हमें इनकी रचनाओं में परिलक्षित होता है । पहले भी कह चुकी हूँ जिस तरह आज हिन्दी आखिरी सांसें गिन रही है उसी बात से सजग रहते हुए हमें इन रचनाओं को और उनके सृजनकारों को यथायोग्य और यथाशक्ति प्रोत्साहन देना होगा । यह अति आवश्यक है । ये ही हमारे भाषा के तारनहार बनेंगे, उसमें प्राण वायु का संचार करेंगे जो वर्तमान की मांग है ।

बात इनकी रचनाओं की की जाए तो जो बात उभर कर आती है वह है इनका शिशु मन । एक बालक अपनी भावनाओं को तोतले शब्दों में कह जाता है बिना किसी झिझक के । ऐसी ही इनकी रचनाएँ हैं —- कृत्रिमता, बोझिलता और आडंबर से रहित । कवयित्रि निजी जीवन में एक कुशल गृहिणी एवं सक्षम माँ है । जिस भाँति बच्चे के प्रति स्नेह या क्रोध प्रकट करने के लिए शब्दों के इंद्रजाल की आवश्यकता नहीं होती उसी भाँति कवयित्रि ने अपने भावों को उड़ेल दिया है । यही कारण है कि कहीं भी आडंबर परिलक्षित नहीं होता । हृदय ने सोचा और कलम ने उकेर दिया । मन संतप्त होता है पुरानी परम्पराओं के टूटने पर तो नए की अँगुली भी पकड़ता है । प्रिय की याद में भावनाओं के झूले पर झूलता है तो विलुप्त होते वन की व्यथा पर आडोलित भी होता है ।

हमें स्वागत करना होगा ऐसे रचनाकारों का वरना हिन्दी की समाप्ति का प्रतिदंड एवं खामियाजा भोगना होगा । समय सजी – धजी थाली परोसने का नहीं बल्कि प्राणरक्षा के लिए उड़ेल दी गई ऐसी ही थालियों का है । साधु !

अंत में साधुवाद वेद के प्रकाश से प्रकाशित प्रेरणा स्रोत को भी ।

कनिष्ठा आयुष की रचनाओं के लिए मेरी यही शुभकामना है कि – आयुष्यमति भव ।

डॉ अनुराधा शुक्ला मिश्रा
पी एच डी (हिन्दी), एम ए (हिन्दी एवं अर्थशास्त्र)
गोल्ड मेडलिस्ट (नागपुर विश्वविद्यालय)
डॉ अनुराधा शुक्ला मिश्रा की रचनाए-

  1. रीति कालीन काव्य में कृष्ण भक्ति का स्वरूप
  2. प्राचीन विधाएँ, शाश्वत मान्यताएँ
  3. प्रणयनी (खण्ड काव्य)
  4. कविता सड्ग्रह
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