1. शीर्षक – पर्यावरण
प्रकृति ने कुछ अनुकूल परिस्थितियां बनायीं।
जीवन संभव हो सके ऐसी स्थितियां बनायीं।।
प्रकृति की गोद में जीवन फला फूला।
किंतु इस वरदान को मनुष्य एकदम भूला।।
प्रकृति ने अदभुत, सुंदर आवरण बनाया।
किंतु मनुष्य ने इसे हरदम मिटाया।।
बड़े-बड़े जंगल हैं कांटे भूमि हुई खाली।
अब तो छाया के साथ प्राणवायु भी भागी।।
बेहतर कल के लिए हम संपदाओं का दोहन कर रहे हैं।
अपने स्वार्थ में प्रकृति को लहूलुहान कर रहे हैं।।
आज खनिजों के उपयोग से यह स्थिति है आयी।
न पर्यावरण ही बचा न प्राणवायु बच पायी।।
अब हम प्राण वायु को सिलेंडरों में लिए फिरते हैं।
वृक्ष लगाकर पर्यावरण सुरक्षित क्यों नहीं करते हैं।।
अब हमें जीवन व प्रकृति के लिए बदलना होगा।
एक दिन नहीं हर दिन पर्यावरण को समर्पित करना होगा।।
-विक्रांत राजपूत चम्बली, ग्वालियर (मध्य प्रदेश)
2. आओ हम सब मिलकर के ऑक्सीजन बनाते हैं
आओ हम सब मिलकर के कसम खाते हैं,
अपने अपने जन्मदिन पर वृक्ष लगाते हैं,
हम सब अपनी जिंदगी बिता रहे रो रो के
आओ बच्चों का जीवन खुशहाल बनाते हैं
जंगलों को काट हम सब अपनी उम्र घटाते हैं,
आओ वृक्ष लगा कर के घटती उम्र बढ़ाते हैं,
घर-घर नलकूप लगाकर व्यर्थ पानी बहाते हैं,
गांव गांव जलकुंड बना सबका जीवन बचाते हैं।
आओ हम सब मिलकर चिपको आंदोलन चलाते हैं,
बहुगुणा जी के विचारों को जन-जन तक पहुंचाते हैं,
सड़क सड़क वृक्ष लगाकर ऑक्सीजन लेवल बढ़ाते हैं,
आओ हम सब मिल करके पर्यावरण दिवस मनाते हैं
-धीरेंद्र सिंह नागा, ग्राम जवई, तिल्हापुर, (कौशांबी) उत्तर प्रदेश
3. सब मिल चलो पेड़ लगाये
सब मिल चलो पेड़ लगायें
भारत भूमि को स्वर्ग बनायें
वसुधा पर हरियाली फैलाकर
वायु को हम स्वच्छ बनायें।
वसंती हवा के शीतल झोंके
चारों दिशाओं में कोयल कूँके
खग कलरव सुन मंद-मंद मुस्काये
सब मिल चलो पेड़ लगायें।
आम, लीची, अमरूद, केला
पेड़ों का अब लगेगा मेला
जामुन, पीपल, बरगद, नीम
सभी स्वस्थ्य रहेंगे बिन वैद्य-हकीम।
नभ में छाई घटा घनघोर
वन में छम-छम नाचे मोर
अम्बर धरती की प्यास बुझाये
सब मिल चलो पेड़ लगायें।
पेड़ों से है जीवन हमारी
घर-आंगन में खुशियाँ सारी
वृक्षों के साथ त्यौहार मनाये
सब मिल चलो पेड़ लगायें।
पेड़ न कोई कट पाये
जंगल अब न घट पाये
धरती का हम कर्ज चुकाये
सब मिल चलो पेड़ लगायें।
वसुंधरा पर जब पेड़ लगेगी
रिमझिम-रिमझिम बारिश होगी
हरियाली से प्रदूषण दूर भगाये
सब मिल चलो पेड़ लगायें।
– नरेश कुमार ‘निराला’, शिक्षक सह कवि, सुपौल, बिहार
4. प्रकृति की विशालता
प्रकृति-प्रेम में जीवन का सार है…
प्रकृति संरक्षण जीवन में जीवन का आधार है ।
न्याय-अन्याय का पाठ पढ़ाती
न्यायपालिका की पाठशाला है।
कर्तव्य पथ प्रशस्त करती
कार्यपालिका की आधारशिला है।
अधीर मन को शीतलता देती
माँ के आँचल की ममता है।
परिपुर्ण वृहद विस्तारित
आयुर्विज्ञान की शाखा
समग्र रुग्ण की औषधी है।
प्रकृति के आँचल में स्वर्गीय अनुभूति है
– कमलेश कुमार गुप्ता “निराला” गोपालगंज , बिहार
5. हम पर्यावरण बचाएँगे
निज हित के लिए हमने,
किया पेड़ों पर प्रहार है।
हर पेड़ यहाँ कराह रहा,
यह कैसा अत्याचार है?
पेड़ों को जब काट-काट,
हमनें शहर बसाया था।
खुद से एक सवाल करो
क्या हमने पेड़ लगाया था?
जहरीली हो रही हवा,
चहुँओर बीमारी छाई है।
ऑक्सीजन भी न मिल रहा,
ये कैसी विपदा आई है?
ऑक्सीजन देते पेड़ को,
कभी हमने ही कटवाया है।
ऑक्सीजन का महत्व हमें,
प्रकृति ने आज बताया है।
जल को किया बर्बाद कभी,
खरीद उसे आज पी रहे।
जल की बर्बादी कर हम,
ये कैसी जिन्दगी जी रहे?
जल है तभी प्राण है,
रखना इसका ध्यान है।
जल की बर्बादी रोक कर,
बचानी अपनी जान है।
लोभ-मोह में आकर हमने,
प्रकृति से खिलवाड़ किया।
इससे क्या नुकसान है?
क्या हमने कभी विचार किया?
रोका न गया खिलवाड़ तो,
हम चैन से कैसे सोएँगे?
जैसे धरती माँ रो रही,
एक दिन हम भी रोएँगे।
प्रकृति को अब बचाना होगा,
जागरूकता फैलाना होगा।
प्रकृति है, तभी हम हैं,
ये सब को सिखलाना होगा।
हम भी पेड़ लगाएँगे,
और हरियाली फैलाएँगे।
आओ हम संकल्प लें,
हम पर्यावरण बचाएँगे।
– चन्दन केशरी, झाझा, जमुई (बिहार)
6. बूढ़ा बाग
गाँव के बिल्कुल किनारे,
एक अकेला बाग हूँ,
सदियों की यादें सँजोए,
करुणा की आवाज़ हूँ।।
जो बिताते थे समय,
बचपन का सब वो खो गए,
छोड़कर के साथ मेरा,
किस गली में सो गए,
पीढ़ियों का ले संदेशा,
द्वार तेरे काग हूँ,
गाँव के बिल्कुल किनारे,
एक अकेला बाग हूँ।।
कोपलें कुम्हिला रही हैं,
टहनियाँ क्रंदन करें,
ना बचेगी छाँव मेरी,
मन ही मन चिंतन करें,
काजलों के प्यार का,
माथे सजा वो दाग हूँ,
गाँव के बिल्कुल किनारे,
एक अकेला बाग हूँ।।
मैं रहूँ या ना रहूँ,
बस इतनी सी अरदास है,
लोरियाँ कानों में गूँजे,
आंखों में ये प्यास है,
बनवाकर चौखट लगाना,
पाया पालने का बनाना,
मैं तेरा ही भाग हूँ,
गाँव के बिल्कुल किनारे,
एक अकेला बाग़ हूँ।।
राकेश कुमार पांडे, युवा गीतकार, आजमगढ़
7. पेड़
भार ग़मों का ढोते पेड़।
कितने अच्छे होते पेड़।
परोपकार की ख़ातिर अपना,
सारा जीवन खोते पेड़।
साथ हमारे हँसते खिलते,
साथ हमारे सोते पेड़।
होके उपेक्षित इंसानों से,
फूट-फूटकर रोते पेड़।
बड़े बुजुर्गों की भांति” राज”
घर की शोभा होते पेड़।
–राम राज प्रजापति, राजस्थान
8. पर्यावरण न एक दिवस हो, प्रतिदिन इसे मनाएं
हरे भरे हों गाँव गलीचे, प्यारी क्यारी कलियाँ।
सदा महकती रहे लताएँ, तरू की प्यारी डलियाँ।।
धूप किसे अच्छी लगती है, हवा न किसको भाए।
चलो करें निर्माण पुनः मिल एक-एक पेड़ लगाएँ।।
पेड़ हमें छाया, फल देते जड़े बांधती माटी।
जल, वायु और औषधियां भी हर पेड़ों मे पाटी।।
वन हमारी हैं संपदा, जन-जीवन का आधार।
वन से बने रेलवे स्लीफर, सर्दी में दें अंगार।।
जितनी भी हो वायु प्रदूषित, सबको चट कर जाते।
उसके बदले देखो हमको प्राणवायु दे जाते।।
देखा बहुत लडकपन हमने, देखी बहुत जवानी।
अक्सर कहते देखे हमने, दादा नाना नानी।।
खड़े किये वो बाग-बगीचे, पौधे खूब लगाए।
रहे सदा जो प्राण बचाते, प्राण प्रिये कहलाए।।
गए भटक हम सान-सौक में एसी महल बनाए।
एक बिटप की कीमत क्या है क्षण भर में समझाए।।
लगे खिसकने छोड़ धरा जब ले कर नाम करोना।
प्राण वायु बिन पेड़ नहीं अब केवल हाथ मे रोना।।
ले संकल्प सभी जन मिलकर, प्रति दिन पेड़ लगाएँ।
हरा-भरा खुशहाल हो जीवन, पर्यावरण बचाएँ।।
पर्यावरण न एक दिवस हो, प्रतिदिन इसे मनाएं।
चलो करें निर्माण पुनः मिल एक-एक पेड़ लगाएँ।।
-जय तिवारी, रीवा (म0प्र0)
9. सोंचो अगर न होते पेड़
हवा न मिलती, जल ना होता,
सुंदर ये स्थल ना होता ।
त्राहिमाम सा मच जाता फिर,
हो जाता अंधेर।
सोंचो अगर न होते पेड़-2
धरती का श्रृंगार पेड़ है,
हरियाली और प्यार पेड़ है।
बिन इसके सब सूना-सूना,
ये हैं असल कुबेर।
सोंचो अगर न होते पेड़-2
अगणित एहसां हम पर इनके,
ईश्वर का वरदान हों जैसे ।
साथ न मिलता इनके तो फिर,
बाधा लेती घेर।
सोंचो अगर न होते पेड़-2
सुख के सारे खान हैं इनसे,
हर जीवों की जान हैं इनसे।
अब भी संभलो,पेड़ लगाओ,
वरना होगी देर।
सोंचो अगर न होते पेड़-2
पर्यावरण बचायेंगे हम,
अब ये वचन निभायेंगे हम।
यह संकल्प सभी का होगा,
वरना होंगे ढ़ेर।
सोंचो अगर न होते पेड़-2
प्रीतम कुमार झा, महुआ, वैशाली, बिहार
10. आज लीजिये शपथ
बचाना है आसपास,बात है ये अति खास,
पेड़ पौधों से ही हमे मिलता शुकून है।
देख कर हरियाली, मन करे बनूँ माली,
चहुँओर स्वच्छ हवा,हर्षित प्रसून है।
है जीवन बचाना तो पर्यावरण बचाना,
एक एक प्राणी में ये भरना जुनून है।
आइये लगायें पौधे,मिलके बचायें पौधे,
लीजिये शपथ आज,दिन पांच जून है।