पद्य

जय तिवारी जी की 5 शानदार रचनाएं | हिन्दी श्री

जय तिवारी

1. परिवार  संस्कृति न जाने कहाँ से कहाँ चली गयी है,अब तो परिवार की परिभाषा ही बदल गयी है।पहले परिवार मे होते थे दश-बारह लोग,अब तो चार मे ही सिमट कर रह गयी है।। चाचा-चाची, दादा-दादी परिवार के ही अंग है,लेकिन वर्तमान मे परिवार ने बदले अब ढंग हैं।माता-पिता और बच्चों तक ही रह गया हो […]

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विश्व पर्यावरण दिवस पर 10 बेहतरीन कवितायें | हिन्दी श्री

विश्व पर्यावरण दिवस

1. शीर्षक – पर्यावरण प्रकृति ने कुछ अनुकूल परिस्थितियां बनायीं।जीवन संभव हो सके ऐसी स्थितियां बनायीं।। प्रकृति की गोद में जीवन फला फूला।किंतु इस वरदान को मनुष्य एकदम भूला।। प्रकृति ने अदभुत, सुंदर आवरण बनाया।किंतु मनुष्य ने इसे हरदम मिटाया।। बड़े-बड़े जंगल हैं कांटे भूमि हुई खाली।अब तो छाया के साथ प्राणवायु भी भागी।। बेहतर

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हर आदमी यह सोचता | 5 मुनि शेखर छन्द | Santosh Kumar Prajapati | Mahoba

संतोष कुमार माधव

हर आदमी यह सोचता,अब कुर्सियों पर राज हो ।
मन का सदा सबके करें,नव साज ही चहुँ साज हो ।।
मुख से कहें कुछ और ये,इनके हिया कुछ और ही ।
मत पा लिए जयश्री मिली,फिर हो गए सिरमौर भी ।।

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दुनियादारी से मिला मुझको ज्ञान महान। गयाप्रसाद मौर्य रजत -आगरा | 5 दोहे | हिंदी श्री

gaya prasad maurya rajat

कोरोना काल में कुछ लोगों की सच्चाई बयान करते बेहतरीन दोहे 1. दुनियादारी से मिला ,मुझको ज्ञान महान।चमचागीरी के बिना,मिले नही पहचान।। 2. मंदिर मूरत सामने ,झुका रहा मैं शीश।मेरे कंधों बैठकर ,उसने पाया ईश। 3. मंद मंद मुस्कान में, छिपे हुए कुछ राज।देख गरीबी हँस रहे ,मेरे अपने आज। 4. जैसी करनी आपकी,वैसा मिलता

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मेघा रे तुम इतना बरसे | नवगीत | आनंद अमित

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आनंद अमित –निकल न पायाहलधर घर से।मेघा रे तुमइतना बरसे। डूब चुकी हैंफसलें सारी ।पानी से हैभरी उसारी ।झरना बहताहै छप्पर से ।मेघा रे तुमइतना बरसे । बाल-ग्वाल हैंकितने आकुल ।टूट चुका हैलकड़ी का पुल ।सागर बहतादिखे नहर से ।मेघा रे तुमइतना बरसे । तोड़ बन्ध कोसुरसरि का जल।ग्राम – वक्ष परबहता कल-कल।त्राहिमाम हैतेरे डर

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हमारी अयोध्या है गुलजार सीट | गीत | आनंद अमित

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मिटी रंजिशें अब मिटा खार सीते।हमारी अयोध्या है गुलज़ार सीते। हरिक पथ सजा है, सजी हर गली है।कहीं फूल बिखरे, कहीं पर कली है।लिए हाथ में सब खड़े हार सीते।हमारी अयोध्या है गुलज़ार सीते। है सरयू के तट पर सजी दीप-माला ।सजे देव आलय, सजा है शिवाला ।सभी घर सजे हैं, सजे द्वार सीते ।हमारी

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वेदना | कहीं पर संवेदनाएं है | 2 कविता | मनीष जौनपुरी

manish jaunpuri

1. कहीं पर संवेदनाएं है।कहीं पर संभावनाएं है।आहत हुई आत्माओं से,घर हमने बनाएं है।विषाद अपना है।समुद्र के दोनों छोर तक।देखता हूं जिस तरफ़,चाहे जिस ओर तक।तिनके का एक सहारा,कर सकता है पार मुझे।उम्मीद के इस हर्ष ने,तोड़ा है कई बार मुझे।इतने शब्द कहां है।जिससे मैं कह सकूं,वो वेदना,जो जहां है।। 2. आईना… देख.. मैंने, ख़ुद

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चुनावी माहौल से जुडी ग़ज़लें | डॉ डी. एम. मिश्र

Dr dm mishra

डॉ डी. एम. मिश्र एक चर्चित ग़ज़लकार हैं जिनकी रचनाएं देश विदेश के पाठकों द्वारा बड़े चाव से पढ़ी जाती हैं। इनकी 500 से अधिक रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। कई ग़ज़ल की पुस्तकें प्रकाशित हैं। आप आकाशवाणी, दूरदर्शन, आजतक, ईटीवी, न्यूज़ 18 इंडिया आदि टी वी चैनलों पर अनेक कार्यक्रमों में

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